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________________ [ ५५० ] णकत्वपने से अलग कर दिया इससे राज्याभिषेकको कल्याणक माननेका झगड़ा उठ गया तैसेही श्रीवीरप्रभुके चरित्रकी आदिमेंही कल्याणकाधिकारे "च उत्थुत्तरे साइणा पंचमें" ऐसापाठ सूत्रकार महाराजही कहके गर्भापहारको कल्याणकत्वपनेसे अलगकर देते तो गर्भापहारको कल्याणक माननेका झगड़ाही उठकर आपलोगोंके मन्तव्य मुजब अपने अभीष्टको सिद्धिहोजाती परन्तु सूत्रकारमहाराजने ऐसा न कहके गर्भापहारकी गिनती पूर्वक 'पञ्चत्युत्तरे सारणा परिनिबुडे' इस तरहका पाठ कहकरके जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट, वाचना पूर्वक छहों कल्याणकोंका afar खुलासा किया है इसलिये असङ्गति निवारणेके बहाने गर्भापहारको कल्याणकत्वपने में माननेका निषेध करने सम्बन्धी विनयविजयजीने वृथाही परिश्रम करके भोलेजीवोंको कदाग्रह में गेरनेका कारण क्यों किया होंगा सो विवेकी पाठक जन स्वयं विचार लेना, और यहांपर कोई कहेगा कि श्रीपंचाशकजी में तथा उसीकी वृत्तिमें गर्भापहारको अलग करके च्यवन जन्मादि कल्याणक लिखे हैं तो इसपर मेरा यही कहना है कि श्रीमहावीर स्वामी चरित्राधिकारे सर्व जगह गर्भापहार सहित छ कल्याuster खुलासा लिखा होते भी श्रीपंचाशकजीके पाठको देखकरके छ कल्याणकों का निषेध करनेवाले पूर्ण अज्ञानी अथवा अभिनिवेशिक मिथ्यात्वी मालूम होते हैं क्योंकि श्रीपंचाशकजीनें तो सब क्ष ेत्रोंकी सबी चौबीशीयोंके बहुत तीर्थंकर महाराजों की सामान्य अपेक्षा सम्बन्धी पाठ होनेसे तथा उन सब तीर्थकर महाराजोंको गर्भापहार नहीं हो सकता होनेसे उन्होंके सम्बन्धमें श्री महावीरस्वामीके गर्भापहारको भी नहीं लिखा गया तो क्या श्रीमहावीरस्वामी के चरित्राधिकारे गर्भा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ' www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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