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________________ [ ५४८ ] न्यायानुसार गर्भापहारको कल्याणकत्वपना प्रत्यक्षपने सिद्ध होता है सो व्याकरण के नियमानुसार आपलोग गर्भापहारके कल्याणकत्वपनेको कदापि निषेध नहीं कर सकोगे इतने परभी गच्छकदाग्रहके हठवादरूपी अन्याय से गर्भापहारके कल्याणकत्वपनेको निषेध करोगे तो व्याकरणके नियमका भङ्ग हो जावेगा सो विवेकी विद्वानोंको तो करना कदापि उचित नहीं है तथापि हठवादीजन करें तो उनके कल्पनाको तो कोई रोक नहीं सकता क्योंकि जब हटवादसे शास्त्रोंके पाठोंकोभी उत्थापन करके उसीके अर्थों को भङ्ग करते जिनको लज्जा नहीं तो फिर व्याकरणके नियमकी तो क्या गिनती और विनयविजयजी तथा वर्तमानिक विद्वान् नाम धरानेवाले होकरके भी सूत्रकार महाराज के विरुद्धार्थ में सूत्र पाठके अर्थ का भङ्ग और व्याकरणके नियमका भङ्ग करतेहुए अपनी कल्पना मुजब प्रत्यक्ष अन्यायवाला असङ्गतअर्थ करके भोलेजीवों को कदा ग्रहके भ्रमनेंगेरते हैं सो यह बड़े ही अफसोसकी बात हे . और यहां उपर्युक्त व्याकरणके नियमका आलम्बन लेकर के राज्याभिषेककों भी कल्याणकत्वपना सिद्ध करने का कोई आग्रह करेतोभी नहीं बन सकता है क्योंकि श्रीभद्रबाहुस्वामीजीका कथन किया हुआ इसीही श्री कल्पसूत्र में श्रीआदिनाथजीके चरित्राधिकारे कल्याणक सम्बन्धी राज्याभिषेकके बिना च्यवन जन्म दीक्षादि कल्याणकोंका पाठ मौजूद है तथा तपगच्छ केही विद्वानोंने ग्रीजम्बूद्वीप प्राप्तिको व्याख्यायोंमें राज्याभिषेक कल्याणक नहीं हो सकता है जिसका खुलासा कर दिया है और इसका विशेष खुलासा इसोही ग्रन्यके पृष्ठ ४९० से ४९१ तक छप गया है इसलिये उपरके नियसका आलम्बनसे राज्याभिषेककों कल्याणक बनानेका आग्रह करना सर्वथा अनुचित है और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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