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________________ [ ५४५ ] सो जिन जिन तीर्थकर महाराजोंके एक एक नक्षत्रमें पांच पांच कल्याणक हुए थे उन उन महाराजों के पांच पांच कल्याणकों की व्याख्या नक्षत्रों के नाम पूर्वक खुलासा कर दिखाई इससे श्री वीरप्रभुके छठे मोक्षको न लिखनेको असङ्गति करनेका गणधर महाराजको दूषण कदापि नहीं लग सकता और 'पञ्चहत्थुत्तरे' शब्दके अर्थ में असङ्गति निवारण के बहाने गर्भापहारको कल्याणकत्व पनेसे निषेध भी नहीं हो सकता है तथापि उसीको निषेध करनेवाले सूत्र पाठके अर्थका भङ्ग करते हैं इसलिये उन्होंको उत्तून्रभाषक अन्तर मिथ्यात्वी कहमे में कोई दुषण भी मालूम नहीं होता है सो इस बातको निष्पक्षपाती विवेकी तत्वज्ञ पाठक जन स्वयं विचार लेवेंगे ॥ A और इस जगहपर कितनेही विवेक रहित ऐसा सन्देह करते हैं कि श्रीआचाराङ्गजी तथा श्री स्थानाङ्गजी सूत्रमें उपरोक्त सम्बन्धवाले पाठों में कल्याणक शब्द देखने में नहीं आता है तो फिर कल्याणक कैसे माने जावे, सो ऐसा सन्देह करने वालोंकी अज्ञानताको दूर करनेके लिये, मेरा इतनाही कहना है कि तीर्थंकर महाराजोंके च्यवन जन्मादिकों को कल्यणकत्वपना तो जैनमें प्रसिद्ध है इसलिये जहां जहां तीर्थंकर महाराजके च्यवन जन्मादिकोंके नाम लिखे होंवे वहां वहां वही च्यवन जन्मादिकल्याणक समझनेचाहिये ( और गर्भापहारको भी दूसरे च्यवनकी प्राप्ति होनेसे गर्भापहारको दूसरा च्यवन कल्याण माननेमें आता है) इसका विशेष निर्णय आत्मारामजी के लेखकी समीक्षा में आगेलिखने में आवेगा ; और चौथा यह है कि जैसे इसीही : श्री कल्पसूत्रमें श्रीपार्श्वनाथ स्वामीके चरित्राधिकारे 'तेय' काले ते समए पास अरहा पुरिसा दाणीए - पंचविसाहे हुत्था" इस ६९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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