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________________ [१४३ ] इमलिये यहाँ गर्भापहारकी असङ्गति निवारणका बहाना कदापि नहीं हो सकता है क्योंकि श्री पद्मप्रभुजी आदि तीर्थ कर महाराजोंसे श्रीवीरप्रभुजी तक १४ तीर्थकर महाराजों सम्बन्धी कल्याणकाधिकारे एक समान पाठ होनेसे पीवीरप्रभुके पाठका अर्थ बदला जावे तो सभी तीर्थंकर महाराजोंके पाठका अर्थ बदल जानेसे महान् अनर्थ हो जावे और एकही सूत्रमें एकही जगहपर तथा एकही सम्बन्धपर सबी तीर्थंकर महाराजों सम्बन्धी पांच पांच कल्याणकीकी व्याख्या समान है इसलिये श्रीपद्मप्रभुजी आदि १३ तीर्थंकर महाराजों सम्बन्धी पाठका तो पांच पांच कल्याणकोंका अर्थ करना और श्रीमहावीर स्वामी सम्बन्धी पाठका पांच कल्याणकोका अर्थ नहीं करना ऐसा मूत्रकार महाराजके विरुद्धार्थमें प्रत्यक्ष अन्याय अन्तर मिथ्यात्वीके सिवाय अत्मार्थी तो कदापि नहीं करेगा इसलिये सत्यग्रहणके अभिलाषी विवेकी पाठकगणसे मेरा यही कहना है कि-असङ्गति निवारणके बहाने गर्भापहार रूप श्री वीरप्रभुके दूसरे च्यवन कल्याणकको निषेध करनेका विनय विजयजीने परिश्रम किया सो निष्केवल धर्मठगाईसे भोले जीवोंको मिथ्यात्वके भ्रममें गेर करके श्रीजिनाज्ञाकी सत्य बातपरकी शुद्ध श्रद्धासे भ्रष्ट करनेकी प्रत्यक्ष मायाचारी है सो विवेकी पाठकजन स्वयं विचार लेना और यहांपर भी विचारने योग्य बात है कि-श्रीस्थानांगजी सूत्रमें श्रीपद्म प्रभुजी आदि १३ तीर्थंकर महाराजोंके तो पांचवे कल्याणकमें मोक्ष होनेका गणधर महाराजने कहा और श्रीवीरप्रभुके पांचवेंकल्याणकमें केवल ज्ञान उत्पन्न होनेका ही कहा सो इस जगह पर विनयविजयजी तथा वर्त्तमानिक तपगच्छवालों के मन्तव्य मुजब तो जो श्रीमहावीर स्वामीकेभी पांचही कल्या. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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