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________________ [ ५४० ] प्रभुकें ही आगे सूर्याभदेवने समोवसरणके पास बतीस प्रकारका नाटक करके श्रीगौतम स्वामी आदिको दिखाया जिसमें प्रभुके च्यवन, गर्भापहार, जन्मादिकों का वर्णन भी खुलासा पूर्वक दिखाया है इसलिये जो गर्भापहार निन्दनीक होता तो भगवान्का पूर्ण भक्त सूर्याभदेव वहां नाटकमें उसीके स्वरूपको कदापि नहीं दिखाता तथा उसी बातको जगह जगह पर शास्त्रकार महाराज भी कदापि नहीं लिखते परन्तु लिखा है इसपर भी विवेक बुद्धिसे विचार किया जावे तो कर्मों की विचित्रताका दर्शाव जैन शास्त्रों में पक्षपात रहित लिखने में आया है सो भव्यजीवोंके आत्मनिर्जराका कारण है इस लिये गर्भापहारकी निन्दा करनेवाले अपनी आत्मा को कर्मों से भारी करते हैं इस बातको विवेकी तत्वज्ञ सज्जन अपनो बुद्धिसे आपही विचार लेवेंगे और आगे फिर भी विनयविजयजीमे लिखा है कि (अथ पंचहत्त्तरे इत्यत्र गर्भापहरणं कथं उक्त इति चेत् सत्यं अत्रहि भगवान् देवानन्दा कुक्षौ अवतीर्णः प्रसूतपतीच त्रिशलेति असंगतिः स्यात्तन्निवारणाय पंच हत्युत्तरेत्ति वचनं इत्यलंप्र संगेन ) इन अक्षरों करके भगवान्‌के देवलोक से देवानन्दामाताकी कुक्षिसे उत्पन्न होनेका और जन्म त्रिशलामाताकी कुक्षिसे होनेका दिखा करके असङ्गति निवारणके लिये 'पंच इत्युत्तरे' लिखनेका कारण विनयविजयजीने ठहराया और गर्भापहारके छठे कल्याणकको निषेध किया सो शास्त्रोंके तात्पर्यार्थको समझे बिना अज्ञानता से अथवा गच्छकदाग्रह रूप अभिनिवेशिकमिध्यात्वकी मायाटत्तिसे भोलेजीवों को भ्रमानेके लिये हथा ही परिश्रम करके अपनी विद्वत्ताकी हंसी करगई है क्योंकि देखो-प्रथम तो श्रीकल्पसूत्र में 'पचहत्त्तरे' का? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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