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________________ [ ५९ ] उदर में पधारने रूप गर्भापहारको) छठा भवकी गिनती में कहा गया है सो ही जिस पोटिल के भवग्रहणसे भगवान्‌का यह छठा भव अष्टपमेसे कहने में आया तिस भगवान्‌ के भवग्रहणसे छठा पोटिलकाभव गृहण किया गया ॥ अब देखिये उपरके पाठ में श्रीगणधर महाराजने तथा श्री अभयदेव सूरिजी महाराजने देवानन्दामाता के उदरसे त्रिशला माता के उदर में पधारने रूप गर्भापहारको निश्चय करके उत्तम प्रकार के भवकी गिनती में प्रमाण किया तथा त्रिशला माता के उदर में जानेसे ही तीर्थ करपने प्रगट होनेका लिखा इससे तथा श्रीकल्पसूत्र और उनकी अनेक व्याख्या वगैरह अनेक शास्त्रानुसार भगवान्‌के गर्भापहार होनेसे च्यवन कल्याणक की तरह ही त्रिशलामाताने चौदह स्वप्नोंको देखे तथा शास्त्रकारों ने भी स्वप्नोंका विस्तारसे वर्णनकिया और सिद्धार्थ राजाने स्वप्न पाठकोंकों बुलाकर स्वप्नोंका अर्थ पूछने से पुत्रोत्पत्ति सम्बन्धी व्याख्या वगैरह कारणोंस भगवान् के गर्भापहारको अति श्रष्टतापूर्वक कल्याणकत्वपना तो स्वयं सिद्ध होते भी विनय विजयजीने उसीको अतिनिन्दनीक कह करके कल्याणकत्वपमेसे निषेध किया सो गच्छकदाग्रहके मिथ्यात्व से भगवान्‌की तथा अनेक शास्त्रकार महाराजोंकी बड़ी ही आशातना करके अपनेको और अन्धपरंपरा वाले दृष्टिरागियोंको भवोभवमें भगवंतकी आशातनाके अतीव निन्दनीक महान् अनिष्ट कर्म उपार्जन करने करानेका बुथाही कारणकिया है सो तो शास्त्रज्ञ विवेकीजन स्वयंविचारलेवेंगे, और अब वर्तमानिक श्रीतपगच्छके महाशयोंसे मेरा यही कहना है कि आप लोग श्रीगणधर महाराजके तथा श्रीनवांगी वृत्तिकार श्री अभयदेवसूरिजी महाराजके और पञ्चागी ६१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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