SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ] मरखत्तण जोग मुवागएणं अव्वाबाई अवाबाहेण कुच्छिसि ममताए साहरिए, ॥ इत्यादि । इसके आगे चौदह स्वप्न वगैरहका तथा जन्मादिका वर्णन है उपरके दोनों पाठोंका संक्षिप्त पवार्थ:-तिसका और तिससमये अमण भगवन् श्रीमहावीर स्वामी आषाढ़ शुदी ६ को दशम देवलोकके सबसे श्रेष्ट पुष्पोत्तर नामा विमानसे देवत्वपनेके परिपूर्ण वीससागरोपमका आयुष्यकी स्थितिको तथा देवसम्बन्धी भवको क्षयकरके सरलगतिसे इसी जम्बूद्वीपके दक्षिण भरतक्षेत्रे इसी अवसर्पिणीमें दुःखम मुखमा नामा एककोडाकोडी सागरोपमसे ४२ हजार वर्ष न्युनके प्रमा. णवाला चौथा आराके अन्त में उसीके १५ वर्ष और । महि. मे शेष रहते तथा २३ तीर्थकर हुए बाद चरम तीर्थंकर अमगा भगवन् श्रीमहावीर स्वामी माहणकुड ग्रामनगर, कोडाल गौत्रके ऋषमदत्तनामा ब्राह्मणकी जालंधरनामा गौत्राकी देवानन्दा मामा ब्राह्मणीको कुक्षिमें उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र चन्द्र के योगर्म गर्भपने उत्पन्न हुए सो देवसम्बन्धो माहारका शरीरका और भवका त्यागकरके जय उत्पन्न हुए तब भगवान्को मति श्रुति और अवधि यह तीन ज्ञानये इसलिये ज्ञानसे मैं यहां देवलोकसे व्यवकरके माताकी कुक्षिमें उत्पन होगा ऐसा जानते थे परन्तु च्यवनका काल १ सय मात्रका होनेसे उसी वगतको नहीं जाना और उत्पा हुए बाद फिर जानस जान डिया और इसीतरह तिसकाल तिस समय यहांस माखिम बदी १३ को उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रा इन्द्रके कथनानुसार हरिणेगमेषिदेवने देवानन्दाकी कक्षिसे संहरसकरके क्षत्रिय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy