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________________ [ Ye ] उपरके लेखकी समीक्षा करके पाठक वर्गको दिखाता हूं कि-हे सज्जन पुरुषों उपरके लेखको देख कर मेरेको बड़े ही खेदके साथ लिखना पड़ता है कि-उपरके लेखम श्रीविनयविजयजीने अपने संसार सद्धिका हृदयमें कुछ भी भय न करके कुयुक्तियों के विकल्पोंसे उत्सूत्रभाषणोंका संग्रह करके भोले जीवों को भी संसार यद्धिका हेतुभूत हरवर्षे श्रीपर्युषणापर्वमें बांधने के लिये दुर्लभबोधिका कारण रूप महान् अनर्ष कारक माढ मिथ्यात्वका कारण कियाहैबोंकि उपर के लेखकी आदिम ही "अध षट् कल्याणक वादी आह इन अक्षरों करके श्रीमहावीर स्वामीके छ कल्याणको को माननेवाले श्रीखरतरगच्छवालों को शास्त्रविरुद्धवादी ठहरा कर उसीको निषेध करनेके लिये आप शास्त्रानुसार शुद्ध प्ररूपक प्रतिवादी बने सो निष्केवल उत्सूत्र भाषण है क्यों कि श्रीतीर्थंकर, गणधर, पूर्वघरादि, महाराणों ने खुलासा पर्वक छ कल्याणकोंका वर्णन किया है उसीके ही अनुसार श्रीखरतर गच्छवाले ( कल्याणक ) मानते हैं इस लिये उनको शाख विरुद्ध वादी ठहरा करके छ कल्याणकांका निबध करनेका श्रीविनयविजयजीने उद्यम किया हो तो श्रीतीर्थंकर मगधरादि महाराजो को ही शास्त्र विरुद्ध वादी ठहराने जैसा महान् अनर्थ कारक उत्सूत्र भाषण हो गया सो विवेकी पाठक गण स्वयं विचार लेवेंगे। ___और ननु शब्दसे प्रश्न उठाकर 'पंचहत्युतरे साइणा परिनिव्वुड़े इस श्रीकल्पसूत्रके मूल पाठका वचन करके मोमहावीरस्वामीके गर्भापहार सहित पाँच कल्यामक हस्तोत्तरा नक्षत्र तथा छठा कल्याणक स्वाति नक्षत्र यह कल्याणक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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