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________________ अथ प्रशस्ति । अनेक प्रकारके उपसर्गों को सहन करके केवलज्ञान रूपी सूर्यको प्रकाश किया और जगत जीवोंका कल्याण करके भष्ट कर्मोंका क्षय कर मोक्ष पधारे। ऐसे शासन नायक श्री वर्द्धमान् स्वामीको वारंबार नमस्कार करके पर्युषण निर्णय ग्रन्थके अन्त मङ्गल रूप मै अपने पूर्वाचार्यों को नमस्कार करता ॥ १ ॥ भब्य जीवोंके सब प्रकारके वांछीतार्थ को पूरण करनेमें कल्पवृक्ष के समान श्रीवीरप्रभुके प्रथम गणधर श्रीगौतम स्वामी जगतमें हमारा कल्याण करो ॥ २ ॥ श्री वर्द्धमान् स्वामी के पट्ट परम्पराने मीसुधर्मस्वामी जबूस्वामी केवली हमको शुद्ध रत्न प्रयोके देने वाले हो ॥ ३ ॥ और भव्य जीवोंके हृदयका अज्ञान रूपी अन्धकारको नाश करने में भास्कर के समान तथा मुक्तिमार्गको बतलाने में निरन्तर अप्रमादी प्रभवादि युग प्रधान आचार्य होते भये ॥ ४ ॥ इसी तरह अनुक्रमें कोटीगच्छ चन्द्रकुल और बयरी शाखा में श्रीतद्योतनसूरिजी के शिष्य श्रीवर्द्धमान • स्वामीके शासनको वृद्धि करने वाले और जिन्होंको घरणेन्द्र ने आकर महिमा गर्भित सूरिमन्त्रका सब भेद बतलाया ऐसे भी वर्द्धमान सूरिजी हुए ॥ ५ ॥ और चैत्य वासियोंकी कल्पित प्ररूपणारूप मायाजालको तोड़ने में तीक्ष्ण खड्गके समान तथा गुर्जर भूमि गुजरातमें जिनाशानुसार शुद्धसंयममार्गको प्रकाश करने में सूर्य्यचन्द्र समाम ऐसे भीवर्द्धमान्सूरिजी के दो शिष्य भोजिनेश्वरसूरिजी तथा बुद्धिसागरसूरिजी हुए ॥ ६ ॥ इन्ही श्री जिनेश्वरसूरिजी महाराजने अणहलपुर पट्टणमें दुर्लभ 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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