SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ११ ] आश्विन वदी १३ को (गुजराती भाद्रव वदी १३ को ) वीर प्रभु त्रिशलाकी कुक्षिमें पधारे उसमें तीर्थंकर के च्यवन कल्याणक संबन्धी सब कर्त्तव्य प्रगटपने सिद्ध है इस बातको निष्पक्षपाती विवेकी आत्मार्थी सज्जन पाठकगण स्वयं विचार सकते हैं । और इस अवसर्पिणीनें कालानुभावसे भगवान् देवानन्दा ब्राह्मणीकी कुक्षिमें आये उसको कल्पसूत्र के मूल पाठ आश्चर्य कहा है और दश आश्चर्यो का वर्णनमें भी "गमहरण" याने देवानन्दा के गर्भ से भगवान्‌का हरण हुआ उसको आश्चर्य कहा है इसलिये कारणसे तो ब्राह्मण कुलमें भगवान् आये सो आश्चर्य माना तथा कार्यसे ब्राह्मण कुलमेंसे अपहरण हुआ उसको आश्चर्य माना है और आश्चर्यका प्रतिकार करने के लिये ही इन्द्र महाराजने उत्तम कुडमें भगवान्‌को पधराया हैं इस लिये भगवान्के उत्तम कुलमें आनेको श्री समवायांगजी सूत्र और लोक प्रकाशमें अलग भव गिना है इस लिये भगवान् त्रिशला के गर्भ में आये सो व्यवन कल्याणक सिद्ध हो चुका तो फिर उसमें उसके कर्त्तव्य माने जावे इसमें तो किसी तरह की शङ्का भी नहीं हो सकती । और जब भगवान् ब्राह्मण कुलमें आये उसको आश्चर्य मानते हो तथा उस आश्चर्य में ध्यवन कल्याणक. सब कर्त्तव्य मानते हो तो फिर आश्चर्यका प्रतिकारमें दूसरे च्यवन कल्याणकत्वपने के शास्त्रोंके और युक्तियों के प्रमाण मौजूद होने पर भी उसको दूसरा च्यवन कल्याणकपना और उसके सब कर्त्तव्य नहीं मानना यह तो गच्छ कदाग्रहको अज्ञानता या अभिनिवेशिक के सिवाय और क्या होगा सो तत्वच जन स्वयं विचार सकते हैं । और तीर्थंकर का जन्म जिस माता के उदरसे होवे उस माता . के गर्भ में तीर्थंकरके आनेको व्यवन कल्याणक कहते हैं यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy