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________________ [ ४८६ ] तथापि आपने किया सो उत्सना भाषण से संसार वृद्धिका हेतु भूत मिथ्यात्वका कारण है और आप जैसे तपगच्छवालोंसे इस अवसर पर हम भी पूछते हैं कि श्रीतीर्थंकर गणधरादि महाराजोने श्रीवीरप्रभुके छ कल्याणक खुलासे कहे है तिसपर भी आप लोग निषेध करनेके लिये शास्त्रों के उलटे अर्थ करके उत्सूत्र भाषणोंसे बाल जोवोंका मिथ्यात्व के भ्रम में गेरनेका कार्य्य करते हो और नय गर्भित श्रीजैन शास्त्रोंके तात्पर्यार्थको गुरुगम्यसे बिना समझे गच्छ कदाग्रहकी विद्वताके अभिमानस श्रीतीर्थंकर गणधरादि महाराजों के विरुद्धार्थमें उत्सूत्र भाषण के फल विपाकसे संसार में परिभ्रमण का किंचित् मात्र भी हृदयमें भय छाते नहीं हो जिसका .. कारण है सो प्रगट करना चाहिये, · और श्री महावीर स्वामीके अच्छेरेको कल्याणकत्व - पनेसे निषेध करते हो तो श्रीआदिनाथ स्वामीके तथा श्री मल्लीनाथ स्वामीके अच्छेरों को भी कल्याणकत्वपनेसे आपको निषेध करना चाहिये सो तो करते नहीं हो और उन अच्छरोको कल्याणकत्वपने में मानते हो फिर श्रीमहा-वीरस्वामीके अच्छेरेको कल्याणकत्वपने से निषेध करते हो सो तो प्रत्यक्षपने गच्छ कदाग्रह के अभिनिवेशिक मिथ्यात्व से भोले जीवोंको भ्रमानेका कारण हो मालूम होता है इस बातको विवेकी पाठक गण स्वयं विचार लेवेगे । और न्याय रत्नजी श्रीशांति विजयजीको धर्म्मबन्धुकी प्रीति से मेरा तो यही कहना है कि आप निज गच्छके हठवादसळे अनेक शास्त्रों के प्रमाण युक्त श्रीवीरमभुके छ कल्याणकों की सत्य बातका निषेध करनेके लिये शास्त्र विरुड प्ररूपणाका परिश्रम करके कुयुक्तियों के विकल्पों से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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