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________________ [ ६४ ] अभिनिवेशिक मिथ्यात्वको त्यागके सत्य बात अङ्गीकार करनी चाहिये - ज्यादा क्या लिखें और हम लोग शक्रन्द्रने गर्भहरण करवाया उससे शक्रइन्द्र कर्तव्य मानकर गर्भहरणको कल्याणकत्वपना नहीं कहते किन्तु श्रीसमवायांग सूत्र वृत्तिके अनुसार गर्भहरणको दूसरे भवर्षे गिनकर के श्रीस्थानांग आचारांग कल्प सूत्रादि शास्त्रोंके पाठ प्रमाणसे और त्रिशला माताने १४ स्वप्न आकाश से उतरते हुए देखे वगैरह कारणोंसे गर्भहरणको दूसरे भवमें गिनकर दूसरा च्यवन रूप कल्याणक मानते हैं इस लिये इन्द्रकृत राज्या भिषेकके दृष्टान्तये वीरप्रभुके छठे कल्याणकको निशेध करने के लिये इन्द्रकृतको समानता संबन्धी अपनी कल्पना सुजब शङ्का समाधान करके धर्म सागरजीने भोले जीवोंको भ्रममें गिरानेका कारण किया है सो सब व्यर्थ है । और आगे फिर भी धर्मसागरजीने भोले जीवोंको मिथ्यावके भ्रममें गेर अपनी अंध परंपराकी माया जाल में फंसाने के लिये अपने संसार बढ़नेका भय न करते हुए श्रीजिनवलभ सूरिजी तथा प्रीजिनदत्त सूरिजी और उन्होंके परंपरा वालोंको अनेक तरहके दूषण लगानेके लिये अनेक तरह से कुयुक्तियों के विकल्प करके मन मानी कल्पनासे पूर्वपक्ष लिखके उसके उत्तर में अपनी धर्मठगाई की वाचालता प्रगट करी है जैसे चौथ ( ४ ) का पर्युषण करना आगसमे नहीं लिखा तो भी प्रवचन पूजाकी अभि बृद्धिके लिये कालिकाचार्य जीने ४ को पर्युषणा वार्षिक पर्व किया सो उन्होंके अनुयायी परंपरा वालोंको प्रमाण है तैसे ही गर्भापहार कल्याणक शास्त्रोंमें नहीं कहा तो भी जिनवल्लभ वाचना चार्यने प्रवचन पूजाकी अभिवृद्धि के लिये गर्भापहारको कल्याणक ठहराया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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