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________________ [ ७६१] भी हो जावे तो उसके विपाक वोही इस भव पर भव, भोगेगी परन्तु मूलनायकके प्रभाव तथा अधिष्ठायकके कोपसे शासनकी उन्नतिकी बाधा और संघमें भयंकर उपद्रवकी तो सम्भावना न होगी, और तरुण स्त्री मूलनायकको अङ्ग पूजा न करे परन्तु अग्रपूजा पुष्प प्रकरको रचना धूप दीपादि और भावपूजा चैत्य बंदन स्तवन गीतगान नाटकादि करके अपनी भावनानु. सार अपनी आत्माको पवित्र करें इसका खुलासा श्रीमान् समय सुन्दरजी उपाध्यायजी विरचित मी समाचारीशतक'मामा ग्रन्यसे तथा मोमजिजनयशस्सूरिजी महाराजके आज्ञाके अनुयायी प्रोमान् पं० केशर मुनिजी रचित "प्रश्नोत्तर विचार" मामा पुस्तकके देखनेसे हो जावेगा और विस्तार पूर्वक विशेष निर्णय इसी ग्रन्धकारका बनाया हीरधर्मात्मा तिमिरोच्छेदन भास्कर 'अपरनाम "प्रबधनं परीक्षा निर्णय" नामा ग्रन्थके अवलोकमसे अच्छी तरहसे हो जावेगा यह ग्रन्थ थोड़े समय, प्रकाशित होनेका सम्भव है इसलिये स्त्रीपूजा निषेध सम्बन्धी प्रोजिनदच मूरिजी महाराजको धर्मसागर जी वगैरह दूषण लगाते हैं सो मिथ्यात्वकी रद्धि करनेवाला प्रत्यक्ष मिथ्या है इस पातको निष्पक्षपाती पाठकगण अपरके लेखसे स्वयं विचार लेखेंगे। और आगे फिर भी धर्मसागरजीने 'मी हरिभद्रसरिजी भीअभयदेवसूरिजी आदि पांच कल्याणकबादियौंकी अज्ञानता करके उत् सूत्र भाषणसे तुलना करते हुए पूर्वोक्त चैत्य वासिनी जतनौने निवारण किये जिसपर अपना मत प्रगट करनेके लिये हठसे छठे कल्याणकको व्यवस्था स्थापन करनेका लिखा सो श्रीहरिभद्र सूरिजी श्रीमभयदेव सूरिजी मीजिमवल्लभ सरिजी महाराजले सामान्य विशेषरूप कथनके भावार्थको समझ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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