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________________ [ 9 ] विवेकी जन स्वयं विचार सकते हैं क्योंकि देखो वर्तमान में तुम्हारे तप गच्छ के मुनि श्रीआनन्द सागरजी सुम्बई बन्दर से श्रीसंघ के साथ में श्रीअन्तरिक्ष पार्श्वनाथजीकी यात्रा करने के लिये वहां गये थे तब साथमें भगवानकी प्रतिमा भी थी इस लिये जब तक सन्घ वहां दर्शनके लिये ठहरे तब उन प्रतिमाजी को श्री अन्तरीक्ष पार्श्वनाथजी महाराजके मंदिर में बिराजमान करनेके लिये संघवाले गये सो बात उचित थी तिस पर भी वहांके दिगम्बर लोगोंने कितने दिन तक मंदिर में प्रतिभाजी को बिराजमान करनेका विरोध किया बिराज मान नहीं करने देने लगे तब आपसमें खींचातान होनेसे श्वेतांबर दिगम्बर श्रावकों के आपस में मारपीट लड़ाई दङ्गा हो गया कोर्ट कचेरीमें हजारोंका खर्चा हुआ लोगों को बड़ी तकलीफ उठानी पड़ी साथवाले साधुओं को भी कोर्टनें खड़ा रहना पड़ा इत्यादि बहुत नुकशान हुआ सो जैनमें प्रगट है और श्रीजिनवल्लभ सूरिजी तो कलेशका कारण देख कर पीछे लौट आये सो बहुत अच्छा किया किसी तरह का नुकशान नहीं हुआ परन्तु उससे महाराजका कथन शास्त्र विरुद्ध नहीं समझना चाहिये जिस पर भी कोई इस बातको विरुद्ध समझे तो उनको अज्ञानता है इसको विवेकी जन स्वयं बिचार लेवेंगे और आगे फिर भी धर्म सागरजीने पूयई मूलपडिमंदि साविआ थिई निवासी सम्मंतं " गर्भापहार कल्याणगं पिनहु होई वीरस्स ॥ १ ॥ " इस गाथाको लिख कर छठे कल्याणक को निषेध करनेके लिये बाल जीवोंको अपनी चतुराई दिखाई परन्तु विवेकी विद्वानोंके आगे तो बाल बुद्धिकी वाचालता दिखाकर अपनी हांसी करानेका कारण किया है क्योंकि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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