SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ७७१ ) राज सम्बन्धी पञ्चाशकजी के सामान्य पाठको आगे करके श्री कल्पसूत्रादि अनेक शास्त्रोंमें विशेष रूपसे प्रगटपने वीर प्रभुके छ कल्याणक लिखे हैं उसको निषेध करनेके लिये "यदि वीर प्रभुके छ कल्याणक होते तो पञ्चाशक में उसके मास पक्ष दिन दिखलाते" ऐसी कुयुक्ति मायाचारी करने वालोंको लज्जित होना चाहिये। क्योंकि विशेष रूपसे श्रीकल्पसूत्र में तथा उसकी १९ व्याख्याओंमें और आवश्यक नियुक्ति चूर्णि वगैरह अनेक शास्त्रों में छहीं कल्याणकोंके भिन्न भिन्न मास पक्ष तिथि नक्षत्रका व्याख्यान शास्त्रकारोंने खुलासे कर दिया है उसको छोड़ देना और पञ्चाशक में छ लिखनेका प्रसङ्ग न होनेसे वहां छ न लिखे जिसपर तर्क करना क्या ऐसी मायाचारीमें विद्वत्ता है बड़ी शर्म की बात है, खैर । और भी देखो विशेष व्याख्या में सामान्य पाठ आवे उसका खुलासा टीकाकार करते हैं जैसे वीर प्रभुकी माताके १४ स्वप्नाधिकारे प्रथम हस्तीका वर्णन किया परन्तु वीर प्रभुकी माताने प्रथम सिंह देखा था उसका खुलासा टीकाकारोंने किया परन्तु सामान्य पाठ में विशेष पाठ आवे उसका खुलासा करनेकी विशेष आवश्यक नहीं रहती क्योंकि देखो जैसे २४ तीर्थङ्कर महाराजों के नाम, गोत्र, माता, पिता, दीक्षादि कल्याणक तिथि और साधु साध्वयों के प्रमाण वगैरह के यन्त्रों कोष्टक ) में तथा २४ बोशोके स्तवन वगैरहों में १९वें भगवान्को स्त्री अपने में न लिखके सामान्यपनेसे पुरुषत्वपने में लिखते हैं । तैसेही यद्यपि वीरप्रभुके छ कल्याणक होनेपर भी पचाशकर्मे छ न लिखके सामान्यतासे पांच लिखे तो उसमें कोई इरना नहीं, तथा -इससे निषेध भी नहीं हो सकते इस बातको भी विवेकी जम स्वयं विचार सकते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy