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________________ (755) और श्रीजिनवल्लभसूरिजीने पहिले वाचनाचार्यगणीपद, कूर्चपुरीय गच्छके चैत्यवासी अपने गुरु श्रीजिनेश्वरसूरिजीके पास एक समय कल्पसूत्रवांचते “तेणं कालेणं तेणं समयेणं समणे भगवं महावीरे पञ्चहत्थुत्तरेहोत्था” तथा “सापणापरिनिव्वुडेभयवं" इस पाठके अर्थ में श्रीवीरप्रभुके पांचकल्याणक हस्तोत्तरेमें और छठा स्वाति नक्षत्र में मोक्ष हुआ, इसतरह भगवान्के छ कल्याणक कहने लगे तब गुरुने मना किया सो न मानके क्रोधसे लड़ाई करके अपने चैत्यवासी गुरुको छोड़कर निकल गये और छ कल्याणकोकी प्ररूपणा करने लगे तबसे इसी कारणसे “कोहामओ खरहरो जाओ” अर्थात् क्रोधसे खरतर कहलाने लगे इस तरहसे धर्मसागरजी वगैरहोंने अपने कदाग्रही उत्सूत्र भाषणोंके संग्रहवाले ग्रन्थों में लिखा है और ऐसेही कितनेही अन्ध परम्परावाले मानते हैं सो अज्ञानतासे और अभिनिवेशिक मिथ्यात्वसे प्रत्यक्षही महामिथ्या अन्ध परम्परा चल रही है क्योंकि चैत्यवासी मीजिनेश्वरसूरिजीने इनकों न्याय, व्याकरण, काव्य, कोष, छन्द शास्त्रादि और ज्योतिषादि पढ़ाये बाद अपनी राजी खुशीसे वाचनाचार्यगणीपदने स्थापन करके श्रीनवाङ्गीत्तिकारक श्रीअभयदेवसूरिजीके पास जैनशास्त्रोंका गुरुगम्यतासे अध्ययन कराने के वास्ते भेजा था सो इन महाशयने भी उनको पूरण विद्वान् और शासनप्रभावक विनयादिगुण युक्त जानके थोड़ेही समयमें शास्त्राध्ययन करा दिया, और संसारद्धिकारक तथा दुर्गति देनेवाला चैत्यवास छोड़कर क्रिया उद्धार (पुनर्दीक्षा )से शुद्ध संयममें वर्ताव करने सम्बन्धी उपदेश दिया, उसको अङ्गिकार करके अपने चैत्यवासी गुरुकी आज्ञा लेकर श्रीअभयदेवसूरिजी महाराज पासही पुनःक्षासे क्रिया : उद्धार किया था, और गुरु गम्यताके शास्त्राध्ययमको धारणा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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