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________________ ( १५३ ) धन्य है ऐसी कदाग्रहकी कुटिल बुद्धिको, अब विवेकी सत्यग्राही पाठकगणसे मेरा यही कहना है, कि वर्तमानकालमें सर्वज्ञ के अभावसे पाठान्तरकी बातको झूठी कहना या एकको मान्य, दूसरीका खण्डन, वगैरह न करके मध्यस्थ विचार से बर्ताव करनाही उचित है इसलिये चरित्र प्रकरण पहावली वगैरहोंके पाठान्तरोंको देखके वितर्क करना और कदाग्रह बढ़ाना सर्वथा अनुचित है । महान् कर्मबन्धका कारण है । और इन दोनों महाशयोंने पहावलीके पाठान्तरपर आक्षेप किया तो श्रीकल्पसूत्रको स्थिविरावली के व्याख्याकारोंके लेखक दोषादि भेदभाव के अभिप्रायको तथा चरित्र प्रकरणादिकोंके पाठान्तरोंको देखके दोनों महाशयोंकी अन्धपरम्परामें चलनेवालोंको लज्जित होना चाहिये और कदाग्रहको छोड़कर सरलता से न्यायपूर्वक सत्यको मान्य करना चाहिये,— और पहावलियों में पूर्वाचार्यों के नामोंका मतभेद है, परन्तु सभी पहावलियों में श्रीजिनेश्वरसूरिजीसे खरतर विरुद तथा श्रीनवाङ्गीटत्तिकारक श्री अभयदेवसूरिजीको खरतरगच्छ में लिखे हैं, इसलिये पाठान्तरकी पहावलियोंसे खरतर विरुदका तथा श्रीनवाङ्गीवृत्तिकारक श्री अभयदेवसूरिजी के खरतरगच्छ में होनेका निषेध कदापि नहीं हो सकता सो तो निष्पक्षपाती विवेकीजन स्वयं विचार सकते है, - और कितनेही प्रोजिनवल्लभसूरिजी महाराजसे खरतर गच्छकी उत्पत्ति होने का कहते हैं सो भी मिथ्या है, क्योंकि इन महाराजसे खरतर गच्छकी नवीन उत्पत्ति होने सम्बन्धी कोई भी कारण नहीं बना, किन्तु इन महाराजसे खरतर गव्छ की विशेष प्रसिद्धि होनेके, और शिथिलाचारों दूव्यलिङ्गी गच्छ कदा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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