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________________ (७४८) स्थापन करनेके लिये खरतर गच्छके प्रभावक युग प्रधान पुरुषोंको निन्दा पूर्वक खूब दृढ़तर कदाग्रह बढ़ानेका परिश्रम किया। और उत्सूत्रों के भण्डार तथा कुयुक्तियोंकी अन्धखाहरूप कितनेही ग्रन्थोंकी भी रचना करके तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंके कथनको छोड़कर अपनी अन्धपरम्परामें चलनेवाले पञ्चमकालके गुरुकर्मी कदाग्रहियोंके संसारको बढ़ाने के कारण रूप प्रगट किये सो यद्यपि उस समयके कितनेही आचार्यादि महाराजोंने इनके कदाग्रही वचनोंका अनादर करके उन ग्रन्थों को जलशरण करा दिये, जिससे भविष्यतमें कदाग्रह बढ़ने नहीं पावे, तो भी कलयुगी महिमाके कारण कितनेही भारी कर्म उन बातोंको पकड़ने लगें, और कालान्तरमें-जयविजयजी, विनयविजयजी, वगैरहोंने भी उसी मुजब-कल्पदीपिका, मुखबोधिका, वगैरहमें षट्कल्याणक, अधिक माससे दूसरे मावणमें पर्युषणा सम्बन्धी लिखा, उसकी समीक्षा इसी ग्रन्थ में हो चुकी हैं। और वर्तमान समय में न्यायाम्भोनिधिजी नाम धारक श्रीआत्मारामजीने भी धर्मसागरजीको मानो अपने परम गुरुमान करके उनकी बातोंके फेर में भद्रजीवोंको गेरनेका खन विशेष रूपसे परिश्रम किया और भोले जीवोंको श्रीजिनाज्ञाके शत्रु बना दिये, उसी मुजब वर्तमानमें उन्होंके समुदायवाले-न्यायरत्न जी, वल्लभ विजयजी वगैरह भी वर्तावकर रहे हैं, सो तो इस ग्रन्थको पूर्ण वांचनेवाले स्वयं समझ लेवेंगे और खासकरके वल्लभविजयजीके कत्तव्य परही मेरेको इस ग्रन्यकी रचना करनी पड़ी है। और खास न्यायाम्भोनिधिजीके तथा धर्मसागरजीके. परम पूज्य श्रीवपगच्छनायक श्रीसोमसुन्दरसूरिजीके सन्तानीय प्रीहोमवर्मगणीजीने संवत १४९२ के वर्ष, “श्रीउपदेश सत्तरी"मामा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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