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________________ (४६) करना शुरू किया, और श्रीनवाड़ी इत्तिकारक श्रीमभयदेव पूरिजी महाराज खरतर गच्छमें नहीं हुए ऐसा कहते हुए ? नवाङ्ग वृत्ति मानने रूप अपना अभीष्ट सिद्ध करनेके लिये, और श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराजपर झूठे कल्पित दोषोंका अवलम्बन लगाके १२०४ में खरतरगच्छकी उत्पत्ति कहने लगे, तबसे १३००।१४०० सौ से शिथिलाचारको हटानेके मूल कारण भूत और श्रीनवाड़ी वृत्तिकारक श्रीअभयदेवसूरिजी महाराज खरतर याने सुविहित गच्छमेंही हुए ऐसा सबको विशेष रूपसे मालुम होनेके लिये श्रीजिनेश्वरसूरिजीको खरतर विरुदकी प्राप्तिक लिखनेका कारण बन गया। अन्यथा पूर्वे तो जैसे प्राचीनाचार्योके गच्छ लिखनेका सूढी नहीं थी, तैसेही श्रीजिनेश्वरसूरिजीसे खरतर विरुद लिखने की प्रवृत्ति भी नहीं थी, जिस का विशेष खुलासा तो श्रीअभयदेवसूरिजीके खरतर न लिखने सम्बन्धी शङ्काके समाधानमें ऊपर ही छप चुका है। और जैसे जैसे द्वेषी लोगोंने श्रीजिनेश्वरसूरिजीसे खरतर विरुदका निषेध सम्बन्धी विवाद बढ़ाया, तैसे तैसेही खरतर विरुदके लिखने की प्रवृत्ति भी बढ़ती चलती गई है? __ और जबसे कालदोषादि कारणोंसे श्रीतपगच्छकी समुदाय भी कितनीही वातोंमें शास्त्र विरुद्ध प्रवृत्ति होने लगी, तबसे खरतर विरुदधारकोंने उसका निषेध करना शुरू किया, उसी समयसे इन दोनों गच्छोंके आपसमें द्वेषका कारण होने लगा, और जैसे जैसे आपसमें खण्डन मण्डन वादविवाद बढ़ने लगा, तैसे तैसेही एक एकके-थाप-उत्थापसे निन्दा-इर्षा भी बढ़ने लगी; जिसमें भी तपगच्छके कितनेही आचार्यादि महाराजोंने तो पीवीरप्रभुके छ कल्याणक, तथा अधिक मासकी गिनति पूर्वक दूसरे मावण पर्युषण पर्वका माराधन, और सामायिका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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