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________________ [ 737 ] तो श्रीनवांगी वृत्ति और पञ्चाशक रत्ति वगैरह अनेक शास्त्रोंकी रचना करी है और मीजिनेश्वर सूरिजीसे अपनी परम्परा भी मिलाई है परन्तु इन महाराजको खरतर विरुद धारकका विशेषण तथा मैं खरतर गच्छमें हूँ ऐसा किसी भी ग्रन्थमें नहीं लिखा तो फिर इस महाराजको खरतर गच्छके कैसे माने जावे सो बतलाओ। समाधान-भो देवानु प्रिय ? तेरेको उन महापुरुषों के अभिप्रायकी मालूम नहीं है इसलिये ऐसी शङ्का करता है परन्तु अब हम तेरे तथा अन्य सत्य ग्राही विवेकी भद्र पाठक गणके सन्देहको दूर करनेके लिये उन महापुरुषोंके अभिप्रायको दिखाते हैं सो निस्पक्षपातसे विवेक बुद्धिको हृदयमें स्थिर करके देखो जेसे ? प्राचीन समयमें श्रीशीलांगाचार्यजी, श्रीमलयगिरिजी, 1444 ग्रन्थकर्ता मोहरिभद्रसूरिजी, 500 ग्रन्थकर्ता भीउमा स्वातिवाचकजो, श्रीजिनभद्रगणी क्षमाप्रमणजी, श्रीदेवर्द्धिगणी क्षमाश्रमणजी, श्रीश्यामाचार्यजी, पूर्वधर चूर्णिकार श्रीजिनदास गणी महत्तराचार्यजी मोशान्तिसूरिजी श्रीयशोदेवसूरिजी वगैरह अनेक महापुरुषोंने, किसीने तो अपने बनाये ग्रन्थमें अपने गच्छका नाम नहीं लिखा, किसीने अपने गुरु तकका भी नाम नहीं लिखा, तो भी अन्य ग्रन्थों के आधारसे उन पुरुषोंकों उनके गच्छके मानने में आते हैं। तैसेही श्रीअभयदेव सूरिजीने भी अपने बनाये ग्रन्थों में खरतर नाम नहीं लिखा तो भो न्यायानुसार तो अन्य ग्रन्थों के प्रमाणसे और परम्परा पहावलीके प्रत्यक्ष प्रमाणसे इन महाराजको खरतर गच्छमें मानने चाहिये। और उपरोक्तादि अनेक महापुरुषोंने अपने गुरुका और गच्चका नाम नहीं लिखा तो भी उसी मुजब मान लेना और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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