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________________ [ 734 ] करना और श्रीनवांगी वृत्तिकारक श्रीअभयदेव सूरिजीको खरतर गच्छमें न होनेका ठहराना सो प्रत्यक्ष महामिथ्या है इसको विशेषतासे तो निष्पक्षपाती विवेक बुद्धिजन स्वयं विचार लेवेगे। ___ अब मेरेको बड़े आश्चर्य सहित खेदके साथ लिखना पड़ता है कि न्यायांभोनिधिजीका विशेषण धारण करनेवाले श्रीआत्मारामजी जैसे भी धर्मसागरजीकी धर्म धूर्ताईको ठगाई के अन्ध परम्परामें गड्डरीह प्रवाहकी तरह फंस गये और विवेक बुद्धिकी शून्यतासे विना विचारे ही कुविकल्प और जूठे मालम्बनोंका सहारा लेकर व्यर्थ द्वेष बुद्धिसे अपने दूसरे महाव्रतके भड़का भय न करके श्रीजिनेश्वर सूरिजी महाराजसे खरतर परम्परा चलनेका निषेध करते थोडासा कुछ भी विचार क्यों नहीं किया, क्योंकि देखो भला जब श्रीजिनेश्वरसूरिजी महाराजके सन्तानीय श्रीनवांगी वृत्तिकारक श्रीअभयदेव सूरिजी के शिष्योंसे ही गच्छ भेदसे जुदी शाखा होगई और संवत् 1204 तक श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराजके समय तक तो खरतर गच्छकी दूसरी शाखा भी जुदी हो गई और मूल उहत् खरतर गच्छ सहित दो शाखा अलग होकर तीन भेद भी होगये तो फिर श्रीजिनदत्तसूरिजीसे 1204 खरतर गच्छकी उत्पत्ति कहना लिखना बालकपनके सिवाय और क्या होगा। और जब 'मुधकर' तथा 'रुद्रपल्लीय' यह दोनों शाखा खरतर गच्छकी आज तक इतिहासोंमें और पहावलियों में प्रसिद्ध है तो फिर सं० 1204 में खरतर उत्पत्ति कहने लिखने मानने वालोंको 1204 के पीछे 'मधुकर' और 'रुद्रपल्लीय' यह दोनों खरतर गच्छकी शाखा न माननेका हठ करनेवालोंको भी 'मधुकर' और 'रुद्रपल्लीय' यह दोनों शाखा किस गच्छकी है और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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