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________________ [ ७२८ ] सार्द्धशतक वगैरह प्राचीन ग्रन्थोंसे भी सिद्ध है तथा अन्य इतिहासिक ग्रन्थोंसे और परम्परासे भी सिद्ध है इसलिये थोड़ेसे वर्षो के मतभेदके देखनेसे मूल बातका निषेध करना सो बड़ी भूलं है इसको निष्पक्षपाती विवेकी जन स्वयं विचार सकते हैं ; और १०८४ में भीमराजाने खरतर विरुद दिया यह माना जावे तब तो इतिहासिक पुस्तकोंसे भी कोई विरोध नहीं आ सकता सो यह बात भी तो पाठांतरसे लिखी हुई देखने में आती है इसलिये भीमने दिया या दुर्लभने सो तो श्रीज्ञानीजी जाने परन्तु श्रीजिनेश्वर सूरिजीको खरतर विरुद मिला यह सब प्रकारसे सिद्ध होता है । और जब श्रीनवांगी वृत्तिकारक श्री अभयदेवसूरिजी वगैरह जैनाचार्यो के सम्बन्धमें भी वर्षों का भेद देखा जाता है तो फिर दुर्लभ राजाके सम्बन्धमें निश्चय कैसे कह कसते हैं जिसपर भी निश्चय कहनेवाले प्रत्यक्ष हठवादी ठहरते हैं सो विवेकी जन स्वयं विचार लेवेंगे । और धर्मसागरजीने भी विवेक शून्यता से 'प्रबन्ध चिन्तामणि' 'बनराज चावड प्रबन्ध' वगैरह इतिहासिक पुस्तकर्कोके प्रमाणसे दुर्लभ राजाकी १०99 में मृत्यु होनेका ठहरानेका एकान्त हठवाद करके श्रीजिनेश्वर सूरिजी से खरतर विरुदका विषेध करनेका परिश्रम उठाया और उसी अंधपरम्परासे वर्त्तमानिक कदाग्रही जन आग्रह करते हैं सो उपरोक्त लेखसे सब व्यर्थ ठहरता है इसका विशेष निर्णय सत्यग्राही जन स्वयं कर सकते हैं । शङ्का - अजी आप पूर्वोक्त शास्त्रोंके प्रमाणोंसे श्रीजिनेश्वरजीने चैत्यवासियोंके साथ दुर्लभ राजाकी सभा में शास्त्रार्थ करके राजसभामें खरतर विरुद्ध प्राप्त किया ऐसा सिद्ध करते हो परन्तु " गुरु पारतंत्र्य” तथा “ गणधर सार्द्धशतक" मूल और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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