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________________ [ ७२२ ] उनमें मृषा वादका त्यागरूपी दूजा महाव्रत कैसे माना जावे सो विवेकी जन स्वयं विचार सकते हैं। और अब इन दोनों महाशयोंके झूठे विकल्पोंका निर्णय आगे करने में आता है उससे सबको निःसन्देह हो जावेगा । और श्रीन्यायां भोनिधिजीने 'प्रबन्ध चितामणी' 'गुर्जरदेश भूपावली' 'वनराज चावड़ा प्रबन्ध' और फारबस साहिबकी रची 'रासमाला' वगैरह इतिहास पुस्तकों का प्रमाण बतलाकर संवत् १०99 में दुर्लभ राजाकी मृत्यु होने का ठहराके संवत् १०८० में श्रीजिनेश्वर सूरिजीको खरतर विरुद देनेका निषेध किया सो भी एकान्त हठवाद रूप अभिनिवेशिक मिथ्यात्वका कारण ही मालूम होता है क्योंकि ऊपरके इतिहासिक पुस्तकों में अनेक जगह परस्पर विरुद्धताकी बातें बहुत जगह लिखी हुई हैं और एक ही बातमें अनेक तरहके मतभेद लिखे हुए हैं। तो भी 'रासमाला' वगैरह इतिहासिक पुस्तकोंसे भी श्रीदुर्लभ राजाने श्रीजिनेश्वर सूरिजीको 'खरतर ' विरुद दिया ऐसा सिद्ध होता है सो उसका लेख नीचे दिखाता हूं। प्रथम फारबस साहिबकी रची 'रासमाला' नामकी गुजरातके इतिहासकी पुस्तक दूसरी आवृति पृष्ठ १०५ में नीचे लिखे मूजिब लेख है । “दुर्लभ राजे राज्य सारी रीते चलाव्यु असुरोने तेणे बहादुरी थी जीत्या देशं बांध्यां अने घणां धर्मनां काम कर्या अणहिल वाग्मां तेणे एक दुर्लभ सरोवर बांध्यं श्रीजिनेश्वरसूरि पासे ते भणतो हतो तेथी जैनधर्मनो बोध पामी जीवता प्राणियो ऊपर दया करवाना सारा मार्गमां चालतो" इत्यादि । दूसरा और भी गुजरात देशका इतिहाश मराठी भाषामें मुम्बई निर्णयसागर छापाखानामें छपा है जिसमें भी नीचे मुजिब लिखा है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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