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________________ [ ६९ ] सन्देह नथी, वली तमो पण जैन मुनिओ छो, तो मुनिओनो आचार शुछे? ते सांभलवानी मने इच्छा छे, अने ते आचारमां जो बन्ने मुनिमोनु विरोधपणु मालुम पड़े, तो तेओओ आ नगरमा रहेवू नहीं, अम कही ते दुर्लभराजाले पोताना सरस्वती भण्डारमा रहेलु, जैन मुनिना आचारना स्वरूपवालु दशवैकालिक सूत्र मंगाव्यु, अने तेमां कहेला आचार प्रमाणे आ बन्ने आचार्यो'ने प्रवर्तता जोइने तेमने 'खरतर' विरुद आपी रहेवामाटे त्यां निवास आप्यो, अने चैत्यवासीओ झंखवाणा थइने पोताने स्थानके गया, तथा त्यारथी ते अणहिलपुरमा शुद्ध जैन मुनिमोने निवास मलवा लाग्यो, अने चैत्यवासीओनु जोर धीमे धीमे कमी थतु चाल्यु त्यां बुद्धिसागराचार्य बुद्धिसागर नामनु आठ हजार श्लोक नव्याकरण रच्यु, अवी रीते आ खरतरगच्छना स्थापन करा श्रीजिनेश्वरसूरि आचार्य महाप्रभाविक थल छ। नवम औरभी सर्वगच्छोंकेमान्य श्रीनवांगीत्तिकारक श्रीअभयदेवसूरिजी महाराजुके शिष्य श्रीप्रसन्नचन्द्रसूरिजीकी आज्ञानुसार श्रीसुमतिविमलवाचकके शिष्य श्रीगुणचन्द्रगणजीने श्रीअभयदेवसूरिजी स्वर्ग पधारे उसी वर्षे, याने सम्बत् ११३८ वर्षे प्राकृत भाषाने १२००० प्रमाणे श्रीवीरप्रभुका चरित्रकी रचना करी है उसके अन्तकी प्रशस्तिमें भी श्रीजिनेश्वरसूरिजी महाराजसे "मुविहित" अर्थात् खरतर संतती प्रचलीतहोनेका खुलासा लिखा है जिसका पाठ नीचे मुजब है। स्य मुकज्जाणानलनिदढ । घण घाइ कम्मदारुस्स । गोयम पहुस्स सहस्सा । उपन्नं केवलं नाणं ॥१॥ वारस वासाणि विवोहिकण । भवे सिवंगए तम्मिः ॥ भयवं मुहम्मसामी। शिवाण पां पयासे ॥ २ ॥ संनिविचिरकालं विहरिकण। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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