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________________ [9] त्रिंशिका, पञ्चनिग्रन्यविचारसंग्रहणी पुद्गलषट्त्रिंशका, संग्रहणी जिनभद्रजीए बनामेला विशेषावश्यकभाष्यपर टोका, हरिभद्रसूरिजीना बनावेला षोडशकनी टीका, देवेन्द्र महाराजे बनावेला सतारिकप्रकरणनो टोका विगेरे अनेक ग्रन्थो बनावेला छे, एवोरीते ६० वर्षोनु' आयुष्य संपूर्ण करीने विक्रम संवत् १९३९ मां कपडवंजमा तेमनु देवलोकगमन थयुं, एवी रीते महान् आचार्योनो संक्षपथी इतिहास जाणवो । ८ आठवा और भी श्री जैनधर्मके प्राचीन इतिहासको दोनों पुस्तकों में श्री जिनेश्वरसूरिजीका चरित्र नीचे मुजब लिखा है । जिनेश्वरसूरि - आ महान् आचार्य, उद्योतनसूरिना शिष्य वर्धमान सूरिना शिष्य हता, तथा नवांगी टीकाकार श्री अभयदेवसूरिना गुरु हता । खरतरगच्छ आ आचार्यथी चाल्यो छे, ते विक्रम संवत् १०८० मां विद्यमान हता । तेमणे जावालपुरमां रहोने हरिभद्रसूरिजीना अष्टकपर टीका रचेली छे । तेमने गुजरातना राजा दुर्लभसेन तरफथी खरतरनु विरुद मल्युं हतुं । वली तेमणे पंचलिंगीप्रकरण, वीरचरित्र, लीलावतीकथा, कथारत्नकोष विगेरे अनेक ग्रंथों रचेला छे। तेमने माटे प्रभाविकचरित्रमां प्रभाचंद्रसूरिओ नीचे प्रमाणे वृत्तांत आपेलु छे । मालवा देशमां आवेठी धारा नगरीमां ज्यारे भोज राजा राज्य करता हता त्यारे त्यां लक्ष्मीपति नामनो एक महाधनाढ्य व्यापारी रहेतो हतो । एक दहाडो त्यां महा विद्वान् श्रीधर अने श्रीपति नामना ब्राह्मणना पुत्रो देशो जोवानी इच्छाधी आवी चड्या, तथा भिक्षा माटे ते लक्ष्मीपतिने घेर आववाथी तेणे तेओने भक्तिपूर्वक भिक्षा आपी । ते शेठना घरनी भींतपर हकेशां लेख लखाता हता । ते लेखने आ बुद्धिवान बन्न ब्राह्मणो हमेशां जोता । अने तेमनी अपूर्व याद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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