SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ६८४ ] श्रोजिनबल्लभसूरि थया ते चारित्र निर्मल अनेक ग्रन्थ तणउ : निर्माण कीधड इणइ अनुक्रमइ ! श्रीखरतरपक्षइ अनेक सूरिवर ! सातिशयइ थया, इत्यादि ॥ ४ चौथा और भी श्रीतपगच्छ के श्रीमुनिसुंदर सूरिजी ने " त्रिदश तरंगिणी" में उपरोक्त 'उपदेश सत्तरी' तथा 'कल्पांतरवाच्य' मुजब ही श्रीनवांगी वृत्तिकारक श्री अभयदेव मूरिजी के शिष्य श्री जिनवल्लभ सूरिजी और इनके शिष्य श्रीजिनदत्त सूरिजी को लिखे है जिसका पाठ नीचे मुजब है यथा व्याख्याताभयदेव सूरि रमल प्रज्ञो नवांग्या पुनः, प्रौढिं श्री जिनवल्लभोगुरुरधीत् ज्ञानादि लक्ष्म्याः पुनः ॥ भव्यानां जिनदत्त सूरिरददद्दीक्षां सहस्त्रस्यतु, ग्रन्थान् श्रीतिलकञ्चकार विविधान् चन्द्रप्रभाचार्यवत् ॥ १ ॥ ५ पांचवां श्रीतपगच्छके श्रीरत्नशेखरसूरिजी ने भी श्रीआचार प्रदीप मे श्रीजिनदत्त सूरिजीको श्रीखरतरगच्छ के लिखे हैं सो ग्रन्थ अबी मेरेपास नहीं है इसलिये उस पाठको यहां नहीं लिख सकता परन्तु 'आचारप्रदीप' मूल ग्रन्थ तथा भाषांतर छपा हुआ प्रसिद्ध है सो पाठक गण स्वयं देख लेवेंगे ६ छटा और भी देखो खास न्यायांभो निधिजीने ही 'चतुर्थं स्तुति निर्णय' की पुस्तक में श्री अभयदेव सूरिजी को खरतरगच्छ के लिखे हैं जिसके पृष्ठ १०० की पंक्ति २० से पृष्ठ १०८ की पंक्ति १० तकका लेख नीचे मुजब है तथा श्री अभयदेवसूरिने तथा तिनके शिष्यने देवसि पडिक - मोकी आदिमें चार थुइसें चैत्यवंदना करनी कही है और श्रुतदेवता अरु क्षेत्र) देवताका कायोत्सर्ग करना तथा तिनकी यह कहनी कही है तथा सम्यक्त्व देशविरत्यादिके आरोपणेकी चैत्य वंदना में प्रवचन देवी, भुवन देवता, खेत्र देवता, वेयावच्चगराणं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy