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________________ [ ६८२ ] तीर्थे श्री पार्श्वनाथस्य तव सिद्धिर्भविष्यति ॥ अचीकरदिमामची ततो साविति केचन ॥ ३०॥ इत्युपदेशसप्तत्यां 'द्वादशोपदेशः ॥ देखिये ऊपर के पाठ में श्रीतपगच्छ वालोंनेही अपने बनाये ग्रंथ में पत्तननगर में श्रीभीमराजा और श्रीजिनेश्वर सूरिजी - तथा इन्ही महाराजके शिष्य श्रीनवांगी वृत्ति कारक श्री अभयदेव - सूरिजी को " गच्छः खरतराभिधः” याने श्रीखरतरगच्छ में होनेक प्रगटपने लिखा है और इन महाराजके शरीर में बहुत व्याधि उत्पन्न होजानेसे स्वप्न में शासन देखीने आकर रोग निवारण करने के लिये स्थंभनक ग्रामके पास सेढीनामा नदीके नजीक महा प्रभावशाली अतिशय युक्त श्री पार्श्वनाथजीकी प्रतिमा भूमिके अंदर है उसपर कपिला गऊ नित्य दूधसे स्नान कराती है वहां जाकर उस प्रतिमाको प्रगट करनेसे रोग मुक्त होनेका और नवांग सूत्रोंको टीका करने को कहा तब महाराजने श्रीसंघ सहित वहां जाकर "जयतिहुयण" इत्यादि भगवान्‌को स्तुतिकरनें लगे सो " फणफण" इत्यादि १६वींगाथा बोलतेही प्रतिमा प्रगट होगई और श्रीसंघने भक्ति सहित महापूजा करी उस स्नात्रपूजाके न्हवण जलसे महाराजका शरीर अच्छा हुआ और अनुक्रमे श्रीस्थानांगादि नवअंगों की वृत्तियें करके श्रीवीरप्रभुके शासनकी उन्नति करते हुए बहुत भव्यजीवों का उपकार करके देवलोक पधारे सो खुलासा लिखा है ऐसे महाप्रभावक नवांगी वृत्तिकार श्रीअभयदेवसूरिजी महाराजको उपरोक्त 'उपदेशसम्प्रति' केपाठ में खरतरगच्छके लिखे हैं । २ और दूसरा " मोहन चरित्र” के दूसरे सर्ग में भी भीमराजाने श्रीजिनेश्वर सूरिजी को खरतर विरुद देनेका लिखा है जिसका पाठ मीचे मुजब हैं महावीरात्सुधर्मार्थ- जम्बू श्रीप्रभवादयः । आचार्याः क्रमशोअभूवन् नवत्रि ंशत्सुसंयताः ॥ ४१ ॥ चत्वारिंशास्ततो भूव-न्यूर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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