SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ६७५ ] देखिये ऊपरके पाठमें श्रीजगच्चन्द्रसरिजीको श्रोचैत्रवालगच्छके श्रीदेवभद्रोपाध्यायजीके शिष्य लिखे परन्तु श्रीवडगच्छके श्रीसोमप्रभसूरिजीके तथा श्रीमणिरत्नसूरिजीके शिष्य तो नहीं लिखे सो इसी तरहसे श्रीदेवेंद्रसूरिजीने भी श्रीधर्मरत्नप्रकरणकी त्तिकी प्रशस्तिके पाठमें श्रीजगच्चन्द्रसूरिजीको श्रीवडगच्छके श्रीसोमप्रभसूरिजी तथा श्रीमणिरत्नसूरिजीके शिष्य न लिखके श्रीचैत्रवालगच्छके श्रीदेवभद्रोपाध्यायजीके शिष्य लिखे है सो पाठ तो न्यायांभोनिधिजीनेही “चतुर्थस्तुति निर्णय" की पुस्तकमें लिख दिखाया है सो ऊपरमें भी छप चुका है तो फिर उपरोक्त प्राचीन प्रभावक विद्वान् पुरुषोंके कथन किये हुए पाठोंका उत्थापनरूप और किसी भी शास्त्र प्रमाण बिना अपनी कल्पना मुजब मिथ्या आलम्बनोंसे दूसरी वार शुद्ध संयम ग्रहण करने वाले श्रीजगच्चन्द्रसूरिजीको श्रीवडगच्छके शिथिलाचारी श्रीसोमप्रभसूरिजी तथा श्रीमणिरत्नमूरिजीके शिष्य लिखना मानना यह कोई आत्मार्थी का तो काम नहीं हैं इसका विशेष खुलासा ऊपरमें छप चुका हैं। __और श्रीवडगछमें भो तो बहुत आत्मार्थी शुद्ध शंयमी पूर्वाधार्य होगये परन्तु कर्मों की विचित्रतासे श्रीजगचन्द्रसूरीजी के ही गुरुजी वगैरहोंकी थोडीसीही पेढियों में शिथिलाचारकी प्रति होगई होगी किन्तु सब बड़गच्छमें नहीं इसलिये श्रीवडगच्छके आत्मार्थी शुद्ध संयमी सबको शिथिलाचारी नहीं समझना चाहिये । अब न्यायांभोनिधिजीके समुदाय वाले वगैरह महाशयों को मेरा यही कहना है कि उपरोक्त "चतुर्थ स्तुति निर्णय"को पुस्तकके ऊपरके लेखमें न्यायांभोनिधिजीने तीन थुईके मतको प्ररूपणा करनेवाले श्रीरत्न विजयजी ( श्रीराजेन्द्रसूरिजी ) के गुरुजी वगैरह ३।४ पेढीवालेसंयमी नहीं थे इसलिये श्रीरत्नShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy