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________________ [ ६६- 1 गच्छ से परंपरा मिलाना सिद्ध किया है इसलिये साह्यताका बहाना लेकर बड़गच्छ की परंपरा मिलाना बड़ी भूल है, उससे साह्यता का बहाना लेनेकी मिथ्याबातको छोड़कर सत्यको मान्य करना ही श्रेयकारी है इसकोभी विवेकी जनस्वयं विचार करते हैं । और अब पाठक गणसे मेरा यही कहना है कि श्रीतपगच्छके समुदाय वालोंने अपनी बड़ाई विषेश शोभा होनेके लिये शास्त्रानुसार चैत्रवाल ग इसे अपनी परम्परा मिलाना छोड़कर श्रीवगच्छके पूर्वाचार्यों को बड़े प्रभावक प्रसिद्ध पुरुष जान कर श्रीजगचन्द्रसूरिजी के तथा इन महाराजके गुरुजी वगैरह के शिथिलाचार, असंयम, अशुद्ध परम्पराका विचार न करके बड़गच्छ से परंपरा मिलाने लगे, परन्तु जिनाज्ञा भङ्गका भय होता और अन्तरंगमें न्यायानुसार आत्मार्थी पना होतातो चैत्रवाल गच्छसे अपनी परम्परा मिलाना कदापि न छोड़ते, खैर । और ऊपरके लेखमें श्रीजगचन्द्रसूरिजी के ३ । ४ पेढी वाले गुरुजी दादागुरुजी वगैरहों को मैंने मेरी तरफ से शिथिलाचारी नहीं लिखे किन्तु न्यायांभोनिधिजोके लेखसे ही सिद्धहोते हैं इस लिये इस बातका मुझे कोई दोष नहीं देना इस बातको भो ऊपरके लेखसे विवेकी पाठकगण स्वयं विचार लेवेंगे । बस ? इसी तरहसे न्यायांभोनिधिजीने अन्याय कारक और जिनाशा विरुद्ध वडगच्छसे परंपरा मिलाने रूप गपोलखोचड़ी की बात श्रीखरतरगच्छ में भी कर देनेकेलिये श्रीजिनवल्लभसूरिजी को कुर्च पुरीय गच्छ के चैत्यवासो श्रोजिनेश्वरसूरिजी के शिष्य लिख दिये परन्तु ऐसी जनाजाविरुद्ध वर्तावकी यह बात श्रीखरतरगच्छ में कदापि नहीं चल सकती जिसका विशेष खुलासा ऊपर में लिखा गया हैं इसलिये श्रीवर्द्धमानसूरिजी को श्रीउद्योतनसूरिजीके शिष्य लिखने मुजब श्रीजिनवल्लभसूरिजीको भी श्री खरतरगच्छ के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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