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________________ [ ६१९ ] बहुत कष्ट सहन करके अपनी हिम्मत बहादुरी और शास्त्रोक्त बातोंकी सत्यता दिखानेके लिये उपरोक्त बातों संबंधी अपने स्कंधोंका आस्फालन (खम्भा ठोक) कर कथन किया जिसपर विवेक शून्यताको अन्धपरम्परासे वर्तमानकाल में अन्तर मिथ्यात्वसें बड़ाभारीविभ्रम पड़ गया है, कि श्रीजिनवल्लभसूरिजीने खम्भा ठोंक कर जबराईसे उत्सूत्ररूप छठे कल्याणकको प्रगट किया परन्तु इतना नहीं विचारते है, कि शास्त्रानुसार सत्य बातको प्रकाशित करके मिथ्या हठवादी कदाग्रहियोंको हटानेके लिये अपनी विद्वत्ताकी बहादुरी दिखाई है नतु शास्त्रविरुद्ध उत्सूत्रप्ररूपणाका वृथा हठवादको जबराई, क्योंकि देखो आजकाल वर्तमान में भी यह बातें तो प्रगटपने देखने में आती है; कि कितनेही आदमी किसी तरहकी अपनी सत्य बातको शास्त्रप्रमाणों सहित दिखाते हुए वादानुवाद करके युक्तिपूर्वक सिद्ध करनेके लिये और दूसरे प्रतिवादीकी मिथ्या बातको निषेध करनेके वास्ते -कोई तो छाती ठोककर अपना कथन करते हैं । कोई डङ्के की चोट पूर्वक अपना कथन करते हैं । कोई उद्घोषणा करवाते हुए कथन करते हैं । कोई भृकूटी चढ़ाकर बड़ी तेजीसे कथन करते हैं ॥ कोई बड़ी बड़ी आवाज करके लम्बे लम्बेसे पुकारते हुए कथन करते हैं । कोई झालर, घण्टा बजाते हुए कथन करते हैं ॥ तथा कितने ही भाषण करनेवाले कूद कूदकर उछल उछल करके कथन करते हैं । और कोई कोई तो चौकी टेबल ठोकते हुए कथन करते हैं । और कोई पुस्तकपर हाथ पिछाड़ते हुए कथन करते हैं ॥ इत्यादि अनेक प्रकार से कथन करते हैं सो तो अपनी सत्यता तथ विद्वत्ताकी हिम्मत बहादुरी और अपनी अपनी स्वभाविक प्रकृति शरीरकी चेष्टाका कारण है परन्तु उसको हठवाद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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