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________________ [१९६] प्रगट अक्षरी करके श्रीवीरम के छ कस्याखकोका कपन किया हुआ होनेपर भी ये चैत्यवासी लोग उसको नहीं मानते है इससे विशेष आश्चर्य दूसरा कौनसा होगा सो विधिमार्गमें चौराशी माशातनाका वर्जन किया जिसकोतो ( चैत्यमें रहकर ) करना और जो आगमोंमें छ कल्याणक कथन किये उसको म मानना सो प्रत्यक्ष उत्सूत्रप्ररूपणा है इत्यादि कहा और शास्त्र विरुद्ध होकर अपने कल्पित-मंतव्यको कुयुक्तियोंके विकल्पोसे (बालजीवोंको विम्रमवाले करके) स्थापन करते थे उन्होंको इन महाराजने शास्त्र प्रमाणोंका दर्शाव पूर्वक चैत्यवासियोंके कल्पित मन्तव्यको जूठा ठहराकर शास्त्रानुसार उपरोक बातोंको सिद्ध करके दिखाई और विशेषतासे भव्य जीवोंकी शास्त्र प्रमाणानुसार सत्य बातोंपर दृढ़ता होनेके लिये तथा हठवादी कदाग्रही चौत्यवासियोंकी उत्सूत्र प्ररूपणाको हटानेके लिये फिर भी बड़े जोरके साथ कथन किया कि चैत्यवास निषेध परन्तु उसको विधिसे भक्ति करने संबंधी तथा षट कल्याणक संबंधी जो यह सत्य बात मैं कहता हूँ इसी तरहसे है इसमें अन्यथा नहीं है सो यह उपरोक्त बात किसीको पसन्द नहीं आवे अपने दिलने नहीं रुचती होवे तो जिसकी ताकत होवेसो मेरे सामने माकर विशेषतासे अतिशयकरके अपना मंतव्यको कथकन करो, नहीं तो उनका बकवाद (कथन) वथा मिथ्या माना जावेगा इस तरहसे शास्त्र प्रमाणोंका दर्शाव पूर्वक अपनी विद्वत्ताकी बहादुरीसे भव्यजीबोंको श्रोजिनाज्ञाको सत्य बातमें विशेष दूढ़ता होने के लिये और शिथिलाचारी द्रव्यलिंगी साधुनाम धराने वाले उत्सूत्रभाषो चैत्यवासियोंके कल्पित कदाग्रहके पाखराडका मिथ्यात्वको हटानेके लिये बहादूरीसे अपने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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