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________________ [ ६०९ ] निषेध करने वालोंकी बात बन आती परन्तु राज्याभिषेक के मास पक्षादि सम्बन्धी कुछ भी 'खुलासा न करते हुए गर्भापहार सम्बन्धी तो प्रथम च्यवनवत् सबी बातों में दूसरे च्यवनकी व्याख्या सूत्रकारोंने अनेक जगहों पर करके दिखाई है तिसपर भी अन्तर मिथ्यात्व से टथाही कल्पित कुयुक्लियों करके अज्ञ जीवों को संसार भ्रमणका रास्ता दिखानेवाले उत्सूत्रभाषी साध्वा भासोंसे दूर रहकरके सत्य बातका ग्रहण पूर्वक अपनी आत्मकल्याणके कार्य में उद्यम करना चाहिये । देखिये राज्याभिषेक और गर्भापहार संबंधी शास्त्रकारोंने अलग, अलग, सम्बन्ध पूर्वक अच्छी तरह से खुलासा कर दिया है तथापि शास्त्रकार महाराजों के विरुद्धार्थमें हो करके कुयुक्तियों से खंडनमंडनका वृथा झगड़ा करके आपसमें विरोध भाव करने में ही अपनो विद्वत्ताको बहादुरी समझते हुए निज परके आत्म कल्याण में विघ्नरूप उत्सूत्री बनते कुछ शर्म भी नहीं जाती- हा हा अतीव खेदः ! मुण्ड मुड़ाकर कुयुक्तियों से अपनी बात जमाने में ही धर्म मानने वालों को बहुत लाचारी पूर्वक विनती करता हू कि संसार भ्रमण के हेतुभूत ऐसे निष्प्रयोजनीय कदाग्रहको छोड़कर अपनी आत्मसाधनके लिये मिथ्याभिमानको त्याग करके सत्य बातको ग्रहण करो और दुसरोंकों कराओ इसमें ही अपना मनुष्य जन्म जैनधर्मकी प्राप्ति और साधुपना तथा उपदेशका देना सफल होवे मैंने तो धर्मबन्धुको प्रीतिसे शास्त्रानुसार सत्यबात दिखायदी अब आगे मान्यकरना या नहीं करना आपको इछाकी बात है । परन्तु कदाग्रह ज छुटेगा तो उसके विपाक तो भवांतर में तयार ही समझना । 99 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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