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________________ [ ५६१] वाला प्रत्यक्ष मिथ्या है क्योंकि जब श्रीतीर्थ कर गणधर पूर्वधरादि पूर्वाचार्यो ने और सबी गच्छोंके पूर्वाचार्यों ने पंचांगीके अनेक शास्त्रों में श्रीमहावीरस्वामीके षट्कल्याणक ऐसा प्रगटपने कथन किया है तो फिर इनका लिखना सत्य कैसे होसकेगा सो तो इस ग्रन्थको पढ़नेवाले निष्पक्षपाती सत्यग्राही विवेकी जन स्वयं विचार लेवेंगे___ और श्रीतीर्थ कर गणधर पूर्वधरादि महाराजोंके कथनानुसार हमारे गच्छके पूर्वाचार्य श्रीजिनबल्लभसूरिजी. महा. राजने भी श्रीमहावीरस्वामीके षट्कल्याणक कथन किये इसमें कोई दूषण नहीं है तथापि आत्मारामजीने दंढक मतके पूर्व खभावानुसार शास्त्रकारोंके तात्पर्याथ को गुरुगम्यसे. समझे बिना मिथ्यात्वके उदयसे श्रीजिनबल्लभसूरिजी महाराजपर छ कल्याणक नवीन प्ररूपणका मिथ्या दूषण लगाके विद्वताके आडम्बरसे भोले जीवोंको अपने फन्दमें फसानेके लिये जैन सिद्धान्त समाचारी नामक पुस्तकके पृष्ट ६६ की पंक्ति २९. से पृष्ठ ६७ की २२ वीं पंक्ति तक ऐसे लिखा है कि (खरतरगच्छमें परममान्य ग्रन्थ गणधर सार्द्धशतककी टीकामें ॥ यथा ॥ अभयदेव सूरयः स्वगंगताः प्रसन्न चन्द्राचार्यणापि प्रस्तावाऽभावात् गुरोरादेशोनकृतः केवलं श्रीदेवभद्रा चार्याणामने भणितं मुगुरूपदेशतः प्रस्तावे युष्माभिः सफली कार्यः। इतश्च पत्तनादात्मना तृतीयः सिद्धान्तविधिना जिनवल्लभगणिश्चित्रकूटे विहृतः तत्र चामुण्डा प्रतिबोधिता साधरण पाद्धस्य परिग्रह प्रमाण प्रदत्त श्रीमहावीरस्य गर्भापहाराऽभिधं षष्ट कल्पाणकं प्रकटितं क्रमेण साधारण प्रावण भोपार्श्वनाथ श्रीमहावीरदेव गृहद्वयंकारितं ॥ भावर्थः-मो अभयदेवसूरि महाराज स्वर्गकु प्राप्त हुए और प्रसन्नचन्द्र ७१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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