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________________ [ ५९ ] भावना अध्ययनका पाठ १, तथा उसीकी वृत्तिका पाठ २, और श्रीगणधर महाराज कृत श्रीस्थानांगजी सूत्र के पचम स्थानके प्रथम उद्दृ शेका पाठ ३, तथा उसकी बृत्तिका पाठ ४, और चौदह पूर्वधर महाराज कृत श्रीदशाश्रुत स्कन्ध सूत्र के पर्युषणाकल्पनामा अष्टम अध्ययनका पाठ ५, और उसीकी चूर्णिका पाठ ६, और श्रीचन्द्रगच्छ के श्री पृथ्वीचन्द्रजीकृत श्री कल्पसूत्र के टिप्पणका पाठ १, श्रीवडगच्छके श्रीविनयचन्द्रजी कृत श्रीकल्पसूत्र के निरुक्लका पाठ ८, श्रीजिनप्रभसूरिजीकृत श्री कल्पसूत्रको सन्देहविषौषधिनामा वृत्तिका पाठ और श्री तपगच्छ के श्रीकुलमण्डन सूरिजी कृत श्री कल्पावचूरिका पाठ १०, और श्रीसुल साचरित्रका पाठ ११, इन शास्त्रोंके पाठ तथा भावार्थ और गर्भापहारके अच्छरेको कल्याणक न माननेवालों की शङ्काका युक्तिसे समाधान पूर्वक शुद्ध समा चारीप्रकाश के पष्ठ १० से ९० तक श्री वीरप्रभुके छ कल्याणक सिद्ध करने सम्बन्धी शास्त्र पाठ और युक्ति पूर्वक लेख छपा है सो उपरोक्त सब शास्त्र पाठोंको आत्मारामजी बिना प्रयोजनके ठहराकर वृथाही ग्रन्थभारी करनेका लिखते हैं तो इसपर निष्पक्षपाती तत्वज्ञ पुरुषोंको विवेक बुद्धिसे विचार करना चाहिये - कि, जैसे-कितनेही अन्तर मिथ्यात्वी दीर्घ संसारी भारीकर्मे ढूंढ़िये तथा तेरहापन्थी लोग अपनी कल्पनावाले कदाग्रहको जमाने के लिये श्रीतीर्थंकर गणधरादि महाराजों के कथन किये हुए. शास्त्रों के मूल पाठोंकोभी उत्थापन करके या बिना) प्रयोजनके ठहराकरके अथवा उलटा अर्थकरके उनपाठोंपर अपनी कुयुक्तियों के संग्रहसे बालजीवोंकी श्रद्धाभ्रष्ट करके मिथ्यात्वके भ्रममें गेरते हैं तैसेही आत्मारामजीने भी पूर्व स्वभावानुसार उपर्युक्त श्रीतीर्थंकर गणधरादि महाराजोंके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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