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________________ [ ५५२ ] सीका निवारणके लिये सूत्रकारको 'पञ्च हत्थुत्तरे' का पाठ कथन करने सम्बन्धी विनयविजयजीका कहना कैसे ठीक होसके अपितु कदापि नहीं अर्थात् अभिनिवेशिक मिथ्यात्व करके अन्तरके अमानरूपी अन्धकारको भ्रांतिसे भोले जीवोंको उसीके भ्रमने गेरनेके लिये उपरकी बात सम्बन्धी विनयविजयजीने इतना परिमम किया सो सर्वथा वृथा है और छ कल्याणक निषेध सम्बन्धी विनयवियजोकेलेखका प्रति उत्तरमें छ कल्याणकोंका सिद्धि सम्बन्धी उपरोक्त मेरे लेखको वांचे बाद भंगवान्की आशाका विराधक दीर्घ संसारीके सिवाय आज्ञाआराधक आत्मार्थी तो उनके कुयुक्तियों को भ्रमजालसे अवश्यमेव तत्काल दूर हो जावेगा __ और मेरेको बड़े ही खेदके साथ लिखना पड़ता है कि-विनयविजयजी इतने विद्वान् होकरके भी अपने कल्पित मन्तव्यका स्थापनरूप झूठे आग्रहकी मिथ्यात्व बढ़ानेवाली भ्रमजालकी मालाको अपने रदय पर धारण करके श्रीतीर्थ कर गणधरादि महाराजोंका कथन किया हुपा पञ्चांगीके अनेक प्रत्यक्ष प्रमाणोंसे युक्त पीवीरप्रभुका छठा कल्याणकको निषेध करने के लिये उपर्युक्त प्रमाणोंके पाठोंको उत्थापन करने हुए उपर्युक महाराजोंकी आशातनासे संसारमें परिभ्रमणका कुछ भी भय नकिया और विवेकशन्यतासे गच्छकदाग्रहके अंधपरंपरासे उत्सूत्रभाषयोंका तथा कुयुक्तियोंके विकल्पोंका संग्रहकी बातोंको सुबोधिका लिखके उसी, भोले जीवोंको भ्रमानेकेलिये परिमम करनेने तथा बाल लीलावत् पूर्वापर विरोधि (विसंवादी) वाक्य लिखने में भी कुछ कम नहीं किया है सो उपरोक्त सुबोधिकाके छ कल्याणक निषेध सम्बन्धी लेखको हर वर्षे मीपर्यषणापर्वमें धर्म ध्यानके दिनों में विवेकरहित गच्छ कदाग्रही www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034474
Book TitleAth Shatkalyanak Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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