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________________ त दम् सिर. खरश्चेनिशैषिकान्मनुवर्थीयादिन्यप्पययन्त्रमितिमा वा विगृहीनादपीति वनमेवेति तत्रेय था ३८६ या संख्यायविशिष्ट वारणा न कुत्सिताइति बहुवी हिरविवचः । नियात ना को कद्भाव का चैत्राय संख्यानमिति प्रत्याख्येय कुल्याया तिचं कल्पायी जान को लेप 366 का दक्षिणा जतोऽव्यय एवदत्तिणाशगृघु । अव्ययसाहचर्यात निनदा शित्यन्य सर्चनानिवद्भावइत्याङ्गनतत्परतेय देनडिभिन्नयर मिनिप्रपंचतत्वाड पेयापा श्वान्यइति कथन पश्चात्रनेः कचैन घुमान नि। नच दिग्देश वा चिनियश्चासावकाशय कंकालवाचकान लोवा धेने परवा या दिवश्चादिति डिमचोडवीर पश्चात्त चैतानि पश्चात्रनाइति कथंचित्समाधेय। काविश्याः का पिशाश हायक स्पान्विन्यान्ड शतदाह । कापिशाचिनीति को क वो नामजनयतः प्राग्दीव्यतो राराप्रानं स्पाटा राम दयानिधुन वाधकान स्पेोद्देशेठचा नम्पको पधाद राशन तो पिपरत्वात् कद्याधारी प्राप्तेः नेनव्य ३६ सपू नप Dharmartha Trust J&K. Digitized by eGangotri
SR No.034463
Book TitleSiddhant Kaumudi Vyakhyan Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages507
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size390 MB
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