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________________ इत्थंवैौदनंनैत्रंपचति मैत्रइति न व्यमते साधुन मान्य है र र तादिमते । ९ सिर.स समोइदा दियू रिगरा। नादिनिवेदना हरदत्तेनायिय चेर्नडुहादित्वमित्यस् चौएवं पई २४१ हादित्वमिति मुख्यमनन्वेन नव्यानी गोड यह मा त्रयरे व्यवधेयं। दंडयती निघण्य 24 हादिषुभाध्य बना नपठितस्तयायिगगः शतं देयतामिति भाग्य प्रयोगशाद्विकर्म करवा चहा दिरेव नन्पादि गोगोकर्मशिलट्प्रयोगात चिनश्च राजानो हिरन ४ रापे भवतीतिवाका शेषे शाशन स्यैव प्राधान्यादितिभावः । शन जयतीति त्रिभिभवेय जिज यइतिप्रसाद नोनात स्याकर्म कन्वान्नाय घाधिक हि या चिरुधिप्रविभित्तिचिन नीव हिहरत एका दरी वेह हो दी व्यर्थ जागरा ड्राय को रस्तथापि ना वो हरने वायाँ तिवार्तिक स्वचकारे शापिठिताधिजयन्यादयः समुचीयन इतिकै पर पास का घनदमत्रांशिक मिति भावः यनिबंधनेति नास्त्रेऽहमयी दम बोध बोधइति द्विययीयस्य वोदेद्दिक राम मकत्वेनभाष्यप्रये। गोत्रलिंग मिति भावः श्रतएव स्थास्तु स्रम खो जगाद मारीचमु २४१ मा३ स्मे १ Dharmartha Trust J&K. Digitized by eGangotri
SR No.034463
Book TitleSiddhant Kaumudi Vyakhyan Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages507
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size390 MB
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