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________________ नृत्य करने लगा । श्रेणिकके इसके नाचनेका कारण पूछा तो गौतम स्वामीने उत्तर दिया कि यह यक्ष अर्हद्दासका लघु भ्राता था । यह सप्त व्यसनमें आसक्त था । एक बार यह जूएमें द्रव्य हार गया और इस द्रव्यको न दे सकनेके कारण दूसरे जुआरीने इसे मार मारकर अधमरा कर दिया । अर्हदासने इसे अन्त समय नमस्कार-मंत्र सुनाया, जिसके प्रभावसे वह मरकर यक्ष हुआ है। यक्ष यह सुनकर हर्षसे नृत्य कर रहा है कि उसके भ्राता अईहासके अंतिम केवलीका जन्म होगा। _यहाँसे, पाँचवें पर्वसे, असली जम्बूस्वामीका चरित आरंभ होता है। अर्हद्दासके घर जम्बूकुमारका जन्म हुआ। जम्बूकुमार युवा हुए। उनकी श्रीमंत सेठोंकी चार कन्याओंके साथ सगाई हो गई। उन्होंने मदोन्मत्त हाधीको वशमें करके अपनी वीरता प्रकट की। जम्बूकुमारने एक बार रत्नचूल नामके विद्याधरको पराजित करके मृगांक विद्याधरकी सहायता की, जिससे मृगांकने अपनी पुत्रीका श्रेणिक राजाके साथ विवाह किया। तत्पश्चात् जम्बूकुमार सौधर्म नामक मुनिसे, जो भवदेवका जीव था, भवान्तर सुनकर वैराग्यको प्राप्त हुए। जम्बूकुमारने माता पितासे प्रव्रज्या लेनेकी अनुमति माँगी । माता पिताने बहुत समझाया, पर जम्बूकुमार न माने । अन्तमें पिताकी आज्ञाको शिरोधार्य करके उन्होंने विवाह करनेके एक दिन बाद दीक्षा ले लेनेका निश्चय किया। खूब ठाठ-बाटसे जम्बूकुमारका विवाह हो गया । चारों त्रियोंने अनेक हाव-भावोंसे जम्बुकुमारको विषय-मोग भोगनेके लिये आकर्षित किया, पर वे मेरुके समान अडोल और दृढ़ रहे | बादमें वहाँ विद्युच्चर चोर भी पहुँच गया। चारों नव-विवाहिता वधुओं और
SR No.034462
Book TitleJambuswami Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmalla Pandit, Jagdishchandra Shastri
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1937
Total Pages288
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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