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________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार 67 तो निकला है। व्यक्ति इस पथ पर चलते हुए व्यक्ति मोक्षमार्ग पर बढ़ता है। इसलिए धर्म अर्थ काम और मोक्ष में अंतिम मोक्ष को साररूप बताया गया है। हम सभी विशाल मन करके रहें, गरीबों और जरूरतमंदों के लिए अपने द्वार खुले रखें यही धर्म है। भारत में कोई भूखा या गरीब ना रहे, मुसीबत के समय सभी साथ रहें हमें ऐसा भारत चाहिए। जैन समुदाय में त्याग तपस्या की परंपरा सदियों से है। इस संघ में सभी दीक्षित संत शिक्षित हैं और वे आत्म कल्याण के मार्ग पर चल रहे हैं। गुजरात की धरती के प्रभावक संत हेमचंद्राचार्य ने जैन व्याकरण दिया। सिद्धराज के राज्य में राजदंड के ऊपर धर्मदंड था। राज्य धर्म की आचारसंहिता इसी रूप में प्रस्थापित है। भारत में 55 प्रतिशत से ज्यादा युवाशक्ति है। साधुसंत इनके कल्याण की सतत चिंता करते हैं। हम धर्म के अर्थ को जानते हैं। प्रेम व दया के साथ मानवता निखर उठती है। दया, करूणा, प्रेम का भाव रखकर तथा मोह-माया वासना आदि का त्याग हो तब आत्मा मोक्ष मार्ग पर बढ़ता है। आगामी वर्षों में भारतमाता ही जगत जननी शक्तिस्वरूपा के रूप में विश्व का मार्गदर्शन करेगी। गुजरात में जीवदया के मद्देनजर कांदला से जीवित पशुओं का निर्यात बंद करा दिया गया। इसे उपस्थित जनसमुदाय ने खूब खूब सराहा। आचार्यश्री सुनील सागरजी महाराज ने कहा कि - _ इंसानियत दिल में होती है, तिजोरी में नहीं। ऊपर वाला आपके कर्म को देखता है, आपकी वसीयत नहीं। इतिहास गवाह है कि भगवान महावीर की वाणी को कई महान लोगों ने स्वीकार किया है और रूपाणीजी ने राजकर्म को जीवदया उन्मुखी बनाकर मुखमोड़ कर मानवीयता का महान कार्य किया है। मानव के लिए आयुष्मान जैसी योजना तो पशुओं के लिए भी 108 जैसी आरोग्य मदद सेवा शुरु की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी व्रत संकल्पों के पालन की जीती जागती प्रेरणास्पद मिशाल हैं जिन्होंने विदेश प्रवास के दौरान भी इस परंपरा को जीवंत रखा। "परस्परोपग्रहो जीवानाम” शांतिपूर्ण समृद्ध समाज व्यवस्था का मूलमंत्र सबका साथ सबका विकास की बात कहकर आप जैन धर्म के मूलमंत्र परस्परोपग्रहो जीवानाम को चरितार्थ कर रहे हैं। राजा का जनता के साथ सीधा सम्पर्क अनिवार्य है, नहीं तो स्थापित माध्यमों से होकर जनता की आवाज स्थिति ठीक वैसी हो जाती है जैसे एक बर्फ का गोला कई पदाधिकारियों के बीच से गुजरकर वापस राजा के पास पहुँचते पहुँचते चंद बूंद मात्र रह जाता है। चाणक्य प्रस्थापित चन्द्रगुप्त की अर्थव्यवस्था का प्रतीक चिह्न जैन गुरुओं का कमंडल था जो यह संदेश देता है कि अर्थव्यवस्था ऐसी
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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