SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार 65 भी क्षमाभाव धारण करते हुए युद्ध रोकने की अंतिम क्षण तक कोशिश की थी। भगवान महावीर पर चंड कौशिक सर्प ने विष दंत से हमला किया किन्तु क्षमायोगी प्रभु के शरीर से रक्त की जगह दूध की धार बह निकली। आचार्य भगवन ने अपने साधु जीवन की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि उनके संघ पर राजस्थान में विहार करते हुए मधुमक्खियों ने भयंकर हमला किया किन्तु उनका जहर भी कुछ भी नहीं बिगाड़ सका, कुछ समय पश्चात् ही वे सभी स्वस्थ हो गए। यह है क्षमा करुणा व दया भाव को हृदय में धारण करने की महिमा। इतिहास कर्नाटक राज्य वल्लाल देव और राजस्थान की मीराबाई आदि कई महान उदाहरणों से भरा पड़ा है जहाँ भक्ति भावना के आगे हलाहल विष भी उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सका। आचार्यश्री ने वर्तमान चर्चित मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अभी हाल में न्याय व्यवस्था ने व्यभिचार को सही मानते हुए अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है और इससे पूर्व भी संलेंगिकता और लिव-इन-रिलेशनशिप को जायज करार दिया इस पर तीखी टिप्पणी करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि ये निर्णायक कतिपय भारतीय संस्कृति, उसके घटक एवं उसकी महान मर्यादा को भूल गए कि श्रीराम ने रावण का वध मात्र सीता के लिए नहीं अपितु मर्यादा की रक्षा के लिए किया था। ऐसा अदालती निर्णय देश के चरित्र के लिए घातक सिद्ध होगा। साधना और मर्यादा के आदर्श के बिना हमारी संस्कृति की कोई कीमत नहीं। भारत विश्व गुरु ज्ञान के कारण ही नहीं अपितु साधकों के आचार और विचार दोनों के अद्भुत समन्वय के कारण है। हमारे यहाँ तो दान, आत्मीयता, मैत्री व शील की संस्कृति की आदर्श व उत्तम परंपरा रही है जिसे अपने व्यवहार में बनाए रखना ही हमारा परम कर्तव्य है। परमात्मा एक है भले ही उसे आदि ब्रह्मा कहें, महादेव कहें या अन्य किसी दृष्टि से पुकारें वह सिद्ध स्वरूप ही है। हर आत्मा उनके बताये रास्ते पर चलकर सिद्ध स्वरूप को उपलब्ध हो सकती है। किन्तु जो रास्ता जितना सीधा, सच्चा और सरल होता है वह रास्ता मंजिल तक उतना ही पहले पहुँचा सकता है। अनेकांत की दृष्टि से जीव के अनेकानेक भूमिकाओं के अनुसार विविध स्वरूप प्रकट हो सकते हैं किन्तु मूल स्वरूप तो एक ही है। प्रभु स्वरूप को पाने के लिए हमें मद, अंहकार से बाहर निकलना होगा। हम अपने जीवन में मैल न रखे, किसी से वैरभाव न करें क्योंकि यह जन्मान्तर में भ्रमण करना पड़ता है। विश्व मैत्री दिवस की पावन प्रातःकालीन बेला में श्री रामकृष्ण स्वामी, सेक्टर-23 गुरुकुल के ट्रस्टी, सेक्टर-30 गुरुद्वारा के ज्ञानी रमणदीप सिंह, वैजनाथ महादेव धाम, वासनिया के स्वामी ललितानन्दन महाराज, राजयोगिनी ब्रह्मकुमारी तारा दीदी, श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम कोबा के श्रीअरुण बाई बगडिया, तथा अक्षय पात्र एन.जी.ओ. गांधीनगर के ट्रस्टी श्री मुकेशभाई त्रिवेदी आदि उपस्थित हुए। सभी महानुभावों ने एकमत से आचार्यश्री की इस पहल का
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy