SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार आपका मन किसी से नहीं मिलता तो जीवन की विविध भूमिकाएं भार रूप लगने लगती है भले ही वह विवाहित जिंदगी के मनभेद हों या फिर जॉब आदि की असंतुष्टि । मन मिलने के लिए आपका मन निर्मल होना चाहिए और सामने वाले का भी । दोनों के ही मन में मिलने की बराबर एक समान प्यास का होना जरूरी है। मन और भावनाओं के मिलने से दूर रहने वाले भी पास लगने लगते हैं इसके विपरीत मनमेल के अभाव में पास वाले भी काफी दूर व अप्रिय ही लगते हैं । 28 मन मिलन और मन मुटाव दोनों का प्रभाव समान होता है एक जितना सकारात्मक तो दूसरे का उतना ही नकारात्मक और उसकी स्पष्ट प्रतीति व्यक्ति के व्यवहार में झलकती है। इसी प्रकार धर्म व सत्पुरुषों का समागम बहुत ही सौभाग्य से प्राप्त होता है । जिन्हें प्रभु के वचनों में श्रद्धान व विश्वास होता है वे ही सत् - साधना व संयममय मार्ग का अनुसरण करके अपने जीवन को सार्थक बना पाते हैं। वे जीवन को "ऐश" मानकर विलासी नहीं बनाते अपितु अनासक्ति व कठोर साधना के द्वारा वीर प्रभु की तरह "ऐश्वर्यवान" बनाते हैं । जैसे कीचड़ में रहते हुए भी कमल उससे अलग रहता है ठीक उसी तरह गीता में बताए गए स्थितप्रज्ञ मार्ग का अनुसरण करते हुए व्यक्ति अनासक्त रह सकता है और स्वयं के साथ साथ वह दूसरों के लिए भी उपयोगी बन सकता है । यही सम्यक दर्शन है। प्रायः इस सुलझी हुई सोच के अभाव में हम जाने अनजाने अपने से छोटे व कनिष्क सहकर्मियों व सहायकों का अपमान करते रहते हैं, उन्हें मानवोचित सम्मान देने से कतराते रहते हैं, गुरूर में उनकी परवाह न करने तथा पसंद न करने की गलतियां करते हैं आदि कारण ही मन मुटाव की जड हैं। हमारे अनमोल ग्रंथ बताते हैं कि सभी प्राणियों में परमात्मा स्वरूप आत्मा का निवास होता है यदि हम किसी भी जीव की बेदरकारी करते हैं तो वह परोक्ष रूप से परमात्मा का ही अपमान है। हमें समझना होगा कि मनुष्य कभी बुरा नहीं होता परिस्थितियां ही उसे बुरा बनाती हैं। उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी साबरमती आश्रम की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि एक बार आश्रम में चोर घुस आया, लोग उसे पकड़कर मारने लगे, गांधीजी ने लोगों को रोकते हुए कहा कि क्या आप में से किसी ने यह जानने की कोशिश की कि यह चोरी करने क्यों आया? उन्होंने करूणा भाव से पहले उसे खाना खिलाने को कहा फिर उसकी बात सुनी। चोर ने रोते हुए कहा कि मेरे घर में बीमार माँ है, मेरे पास इलाज के पैसे नहीं हैं, मुझे काम भी नहीं मिलता और मैं 12 घंटे काम करूँ या बीमार माँ की सेवा सुश्रुषा? सच में हम किसी दोषी को लेकर गांधीजी की तरह मानवीय दृष्टि से सोचने का प्रयास नहीं करते। हमें किसी की गलतियों को सार्वजनिक
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy