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________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार | सकते ? गुरुदेव पुनः समझाते हैं कि हल्दी आदि हमारे मसाले का भाग हैं शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि भारतीय संस्कृति के परंपरागत ज्ञान भंडार में मसालों के औषधीय स्वरूप की कई महत्वपूर्ण बातें कही गई हैं जो आरोग्य व शुद्धता की दृष्टि से पूर्णतया वैज्ञानिक हैं। इन मसालों का प्रयोग कब, किस तरह और कितनी मात्रा में करना है? इसके नियत सिद्धांत एवं व्यवहार हैं जिसे हम अमल में ला रहे हैं किन्तु इसके पीछे की वैज्ञानिकता न समझ पाने से तर्क-कुतर्क करके पाप का बंध कर रहे हैं । 14 वस्तुतः वस्तु उपभोग की अतीव लालसा, इसके प्रति रहा हुआ राग ही वह आसक्ति है जो हमारा व्रत भंग कराती है। लेकिन क्रिया समान होने पर भी उस समय श्रावकों को संग्रहण का दोष नहीं लगता जब बेमोसम सब्जियों को सुखाकर माताएं संग्रह करती हैं । इस भेद को न समझने वाले मूढ़ लोग सूखी हुई मछली आदि में दोष न मानने का भी कुतर्क देने से नहीं हिचकिचाते। गुरुदेव का कोमल हृदय क्षुधाशान्त हेतु की जा रही मूक प्राणियों की हिंसा से बेहद दुखी हैं, द्रवित है इसीलिए अपने हर व्याख्यान में इसका जिक्र किए बिना नहीं रह पाते । शायद कभी मद्य, मांस, मधु इन तीन मकारों, अभक्ष्यों का भक्षण करने वालों की चेतना जागृत हो जाय और उपदेश सुनकर वे इनके वर्तमान व दूरगामी दुष्परिणामों से सावधान हो सकें। वे कहते हैं कि हमें अपने पर से अनुभव करना चाहिए कि मरने वाले जानवर के परिणाम भी बचाव का प्रयत्न करने के बाबजूद कितने क्रुद्ध होते हैं, मारने वाले क्रूर व्यक्ति की तरह भले ही वह कुछ कर सकने की स्थिति में भले ही न हो किन्तु इसकी जहरीली रासायनिक प्रतिक्रिया उसके शरीर में अवश्य होती है। तो क्या वह उसके मांस का भक्षण करने वाले के आरोग्य को प्रभावित नहीं करती होगी? राष्ट्र हित में वे (गुरुवर) शराब जैसे व्यसन की जागृति को लेकर चुप्पी नहीं साध पाते। वे शराब सेवन की बहुआयामी विभीषिका के बारे में बताते हैं कि आज शराब के नशे में धुत्त व्यक्ति न करने जैसा क्या कुछ नहीं कर बैठता? परिवार, समाज व राष्ट्र को किसी न किसी रूप में क्या इसका हर्जाना नहीं उठाना पड़ता ? कई बार तो शराब में बढ़ते अल्कोहल के स्तर एवं प्रक्रिया में पनप चुके जहर के कारण असमय में मौतें भी होती हैं जिसका खामियाजा वह व्यक्ति ही नहीं अपितु उसका समूचा परिवार, समाज यहाँ तक कि आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ता हैं । अतः एक अणुव्रती एवं 8 मूलगुणों का पालन करने वाला श्रावक सदैव इन विकारों एवं विकृतियों से दूर रहता है इनमें आसक्ति व राग ही हिंसा तथा पाप का मूल है। ऐसे उपकारी गुरु हमें सदैव मिलते रहें जो उस सड़क की तरह है जो खुद तो वहीं रहती है किन्तु अपने पथिक को सही मंजिल पर पहुँचा देती है ।
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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