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________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार निरीह पशुओ के प्राण हरता था । सामाजिक समरसता का पूरक माखन चोरी भी उनका खेल था जिसके जरिए वे स्वदेशी का संदेश दे रहे थे। किसी भी महापुरुष का जीवन ऐसा नहीं मिलता जो शराब सेवन करते हों या ऐसे कार्य की अनुमोदना करते हों । 6 आचार्यश्री कहते हैं कि जब तक जीवन से हिंसा का खात्मा नहीं हो जाता तब तक जीवात्मा और परमात्मा का मिलन नहीं हो सकता। हम कहीं भी पैदा हो गए किन्तु अब तो उजाले में जीने की आदत डालें। ये शराब आदि व्यसन मन को मोहित करते हैं और एक के बाद एक कई गुनाह बारी बारी से व्यक्ति से करा डालते हैं। इसके नशे में उसे भान ही नहीं रहता कि उसने अपना कितना अहित कर लिया? कई बार स्वार्थी तत्व उसकी इसी कमजोरी का फायदा उठाकर न सिर्फ उसे बल्कि उसके अपनों का भी जीवन तहस नहस कर डालते हैं। ऐसा व्यक्ति अनियंत्रित होकर मनमाना निरंकुश व्यवहार करने लगता है किसी भी प्रकार की हिंसा एवं उसके कुत्सित परिणामों का भय उसे नहीं रहता । व्यसन में अंधा व्यक्ति पवित्र रिश्तों की मर्यादा को भी तार तार कर देता है और ऐसा अमानवीय, अधम कर्म करते हुए लोक निंदा का पात्र बनता है । एक शिक्षाप्रद कथानक के माध्यम से आचार्यश्री ने व्यसन के परिणामों की भयानकता का बोध कराया कि एक संन्यासी के पास एक रूपसी उनका चारित्र खंडित करने के उद्देश्य से मदिरा व मांस का पात्र लेकर उनके पास गई और तलवार का भय दिखाते हुए कहा कि मदिरा, मांस और मैं रूपसी स्वयं तुम्हें इन तीनों में से किसी एक को स्वाकीर करना होगा। संन्यासी भय के साये में रहते हुए एक क्षण विचारता है कि इन सभी का सेवन इह लोक व परलोक दोनों ही दृष्टि से निकृष्ट है किन्तु जीवन की लालसा में शिथिलता का शिकार होते हुए विचार कर लेता है कि चलो शराब पी लेता हूँ, पानी जैसा ही तो है। किन्तु शराब के नशे में धुत्त होते ही वह लाये हुए मांस से अपनी क्षुधा मिटाने को आतुर हो उठता है और मदहोश होते हुए उस रूपसी के बाहुपाश में बंध जाता है। देखिए इस शराब के चलते सभी अवगुणों का वह दास बन जाता है। किसी ने कहा है कि अच्छा हुआ कि अँगूर के बेटा नहीं हुआ, बेटी ने ही दुनियाँ सिर पर उठा रखी है । सम्पूर्ण देश में शराब बंदी होनी चाहिए। गुजरात में हैं, अच्छी बात है, इससे कुछ तो फर्क पड़ा है। हम आये दिन कच्ची दारु के सेवन से होने वाली असमय सामूहिक मौत के तांडव से वाकिफ ही हैं। इस व्यसन की आग में कुछ तो सीधे ही मर जाते है तथा कुछ के परिवार सिसक सिसक कर, धीमे धीमे दम तोडने को विवश होते हैं । शराब विविध प्रकार के धान्य- फल आदि को सड़ागला कर, उबालकर तथा उसकी वाष्प को इकठ्ठा करके बनाई जाती है जिसकी
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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