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________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार आदि चार कषायों से बचने हेतु सावधान करती है जिससे हमारे जीवन को सही दिशा मिलती है। हम प्रायः नकारात्मक सोच के कारण प्रमादग्रस्त बनते हैं, दूसरों के लिए अवरोधक बनते हैं किन्तु यह विचार नहीं कर पाते हमारी इन दुष्प्रवृत्तियों का प्रभाव सामने वाले पर पड़ने से पूर्व हमारे अपने चित्त और आत्मा की निर्मलता का घात कर डालता है। क्रोधादि कषायों से सर्व प्रथम अपना तन-मन विकृत बनता है। इस प्रकार नकारात्मक सोच एक प्रकार की हिंसा है। यदि नियम लेकर संकल्प लेकर इसका त्याग नहीं किया जाता तो ये नकारात्मक विकारी भाव अवसर और निमित्त पाते ही आपके जीवन को कभी भी तहस-नहस कर सकते हैं। इसके विपरीत सकारात्मक सोच में आपका भी भला और दूसरों का भी भला होता है। इस व्यवस्था में तनावमुक्त एवं प्रसन्न रह सकते हैं, अपनी निहित शक्तियों का स्वयं, समाज व राष्ट्र के हित में श्रेष्ठतम उपयोग कर सकते हैं। सकारात्मक सोच के माध्यम से संयममय जीवन की अवधारणा को और अधिक पुष्ट करते हुए आचार्यश्री कहते हैं कि मात्र वस्तु त्याग से ही काम नहीं चलना है अपितु वस्तु के प्रति रूचि और आसक्ति का पूर्णरूप से त्याग करने पर ही आन्तरिक और बाह्य समृद्धि संभव हो सकती है। प्रवचन के आरंभ में संघस्थ युवामुनि श्री सुश्रुतसागरजी ने पारंपरिक गीत प्रथा-बारहमासा के द्वारा संयममय कठिन साधनायुक्त गुरुचर्या का परिचय अपनी संगीतमयी वाणी में करा कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। सफलता सदा कायम नहीं रहती सफलता और असफलता रूपी दो धाराओं के मध्य मानव की समूची जिंदगी गुजर जाती है। असफल होने वाला कभी भी पुरुषार्थ के बल पर सफलता हासिल कर सकता है और सफल व्यक्ति को भी नीचे उतरना पड़ सकता है, कोई भी उसका रिकार्ड तोड़कर उसे पीछे के पायदान पर खड़ा कर सकता है। इस लोकोपयोगी सीख के माध्यम से प्राकृताचार्य आचार्य गुरुवर श्री सुनील सागरजी महाराज ने आज प्रातःकालीन सार्वजनिक उद्बोधन में कहा कि जीवन में न तो सफलता स्थायी है और न ही असफलता। हमें न तो सफलता के आने पर घमंड करना चाहिए और न ही असफलता होने पर निराशा में डूब जाना चाहिए। दोनों ही स्थितियों में धैर्य व सौम्यता को हर हाल में बनाए रखना चाहिए। किसी ने सत्य ही कहा है
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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