SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 120 अणुव्रत सदाचार और शाकाहार जायेगा। इन तीनों प्रकार के वचन बोलने से अच्छे दोस्त भी दुश्मन बन जाते हैं। हास्य से भरे हुए वचन नहीं बोलिए। किसी के साथ हँसना बुरा नहीं है किन्तु किसी के ऊपर हँसना बुरा है, विनोद से बोलना बुरा नहीं अपितु झूठ बोलकर, परिहास करते हुए बोलकर हँसना गलत है, मर्मभेदी गलत वचन बोलना, असमंजस भरे वाक्य बोलना, कर्कश बोलना यदि ऐसा सत्य भी हो तो भी ऐसा सत्य नहीं बोलना चाहिए। चुगली हम तब करते हैं जब हम दूसरे को छोटा दिखाना चाहते हैं। चुगली से अच्छे खासे परिवार, अच्छे रिश्ते भी बिगड़ जाते हैं। सावध व्यापार करने से भी पाप का बंध होता है। गलत तरीके से हिंसा करके व्यापार करते हो, चमड़े का व्यापार करते हो और कहते हो कि हमने क्या किया। ऊपर से माल आया और ऊपर से ही चला गया। भइया! जैसा आया और जैसा चला गया वैसा ही कर्म बंध भी होगा और वैसा ही फल भी मिलेगा। अरति करने वाले दो लोगों का जिनका आपस में अच्छा व्यवहार है, उनके बीच घृणा पैदा करने वाले वचन कह देना, भयकारी वचन कह देना जैसेसाथ में रहते हो कोई बात नहीं पर उनसे बचकर रहना, खेदकारी वचन, वैर बंध हो जाये ऐसे वचन कहना, दूसरों को त्रास, परेशानी हो ऐसे वचन ज्ञानी को कदापि नहीं बोलने चाहिए। प्रायः बिना सावधानी के ही ऐसे वचन बोले जाते हैं। __ क्रोध मान माया लोभ कषाय सहित सारे के सारे वचन हिंसा ही हैं, समाज के लिए, देश के लिए और धर्म के लिए घातक ही हैं। इन सब झूठों का मूल प्रमाद ही है। प्रमाद से बचना है तो हिंसा से बचो और यदि हिंसा से वचना है तो झठ से बचो। हम विवेकपूर्वक आलस्ययुक्त वचनों का त्याग करना सीख। भोगोपभोग संबंधित, परिवार संबंधित झूठे वचन बोलने पड़ते हैं वह एक बार अणुव्रती श्रावक के लिए चल भी जायेगा पर जिस किसी बात से लेना देना नहीं हो ऐसे बड़े बड़े झूठ का हमें त्याग करना चाहिए। ज्ञानियो! जिससे किसी का अहित हो ऐसे सब असत्यों का मन वचन काय से त्याग करने में ही जीवन की भलाई है। जीवन सत्य हो, सत्य स्वरूप की पहचान हो और भेदविज्ञान पूर्वक जीवन हो ऐसी मंगलमय भावना। 58 मुनियों का विहार एक सहज एवं शाश्वत प्रक्रिया है। आचार्यश्री सुनील सागरजी महाराज का विहार गांधीनगर से गिरनार की ओर हुआ तो उपस्थित श्रद्धालुओं ने आचार्यप्रवर को नम आंखों से विदाई दी। उपस्थित जनशैलाब अपनी आखों पर नियंत्रण नहीं कर पाया। आज आचार्य भगवन् का ससंघ मंगल विहार श्रीमद् राजचंद्र आध्यात्मिक साधना केन्द्र, कोबा को हुआ। मुनियों का विहार एक सहज एवं शाश्वत प्रक्रिया है। कहा जाता है कि रमता जोगी और बहता पानी ही श्रेष्ठ
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy