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________________ 118 अणुव्रत सदाचार और शाकाहार हो किन्तु जब जाता है तो चमड़ी चीर के ले जाता है। ब्याज के लोभ में बैंक में लंबे समय तक जो पैसा जमा रखते हैं उसका ब्याज जब मिलेगा तब मिलेगा किन्तु उस पैसे का सदुपयोग अथवा दुरुपयोग इस दरम्यान जहाँ भी होगा उसका फल आपको अवश्य मिलेगा। हे भव्य आत्माओ! समझो! अपने भावों का बिगड़ना ही भव का बिगड़ना है इसलिए ऐसे निमित्तों व साधनों से बचो। बिगड़ने में देर नहीं लगती, संवरने में हाथ से समय निकल जाता है। इसलिए जीवन को अहिंसामय बनाने हेतु अणुव्रतों व गुणव्रतों को अपनाएं। जो अनर्थदंड हो गया है उसका प्रायश्चित लें, जो हो रहा है उसे रोकें उस पर लगाम कसें तथा भविष्य में न करने का संकल्प लें। आज तीव्र स्पीड की जिंदगी ने इन गुणों का बहुत नुकसान किया है। बिना ब्रेक की तेज रफ्तार में दौड़ने वाली गाड़ी का क्या हश्र हो सकता है इससे सभी वाकिफ ही हैं इसलिए अपने जीवन पर व्यवहार पर संयम और विवेक की लगाम रखते हुए अपने जीवन को मंगलमय बनाएं। 56 सामाजिक सद्भाव के विकास से हो सकता है गिरनार का सर्वसम्मति से समाधान आचार्य गुरुवर श्री सुनील सागरजी महाराज की पावन निश्रा में गुजरात के मुख्यमंत्री श्री विजयभाई रूपाणीजी ने गिरनार की समस्या का सर्वसम्मति से समाधान का दिया आश्वासन गांधीनगर दिगम्बर जैन समाज के मानस्तंभ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के दरम्यान गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री श्री विजयभाई रूपाणी जी आचार्यश्री सुनील सागर जी महाराज सा. के दर्शनार्थ पधारे। इस सभा में जैन समाज ने ऐसे संवेदनशील, जीवदया प्रेमी मुख्यमंत्री को राजश्री की उपाधि से नवाजा। आदरणीय मुख्यमंत्री श्री रूपाणीजी ने गुरुदेव को श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए उन्हें राष्ट्र गौरव संत का सम्मान प्रदान किया और कहा कि दिगंबर जैन संतों की तपस्या अत्यन्त कठोर है। ऐसे साधक अपने अनुशासित आदर्श आचरण से समाज व राष्ट्र की समस्याओं का व्यवहारिक समाधान उपस्थित करते हैं। यदि उनकी तरह देश सत्य अहिंसा आदि अणुव्रतों को ईमानदारी से जीवन में अपना ले तो गरीबी, बेकारी, भुखमरी व असमानता जैसी समस्याएं नगण्य रह जायेंगी। उन्होंने कहा कि राज्य में आगमन से एवं चातुर्मास दरम्यान प्रसरती धर्मदेशना से यहाँ के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ी है एवं गुजरात की धरा धन्य हुई है।
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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