SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार 111 52 अणुव्रतों के अतिचार व्यक्ति समाज व राष्ट्र के आरोग्य के लिए घातक चतुर्थपट्टाधीश आचार्य श्री सुनीलसागरजी महाराज ने कहा कि अणुव्रतों का पालन व्यक्ति, सामाज व राष्ट्र के हित में अनिवार्य है। इनके पालन में लापरवाही न वरतें अन्यथा वर्तमान व भविष्य दोनों ही दांव पर लग सकते हैं। जैन आगम प्रणीत जीवनशैली में एक श्रावक श्रेष्ठी के लिए 12 व्रतों अर्थात् 5 अणुव्रत, 3 गुणव्रत और 4 शिक्षाव्रतों का पालन अपरिहार्य माना गया है ताकि सभी का समान रूप से विकास हो सके, किसी के हितों की हानि न हो, प्राणों की हानि न हो, लोगों के मन में क्लेश, विषाद, असंतोष न हो अपितु सभी के लिए प्रेम, मैत्री, करुणा व दया हो। सत्य, अहिंसा, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह व्रत का पालन सम्पूर्ण रूप से तो महाव्रती मुनिराज ही कर पाते हैं किन्तु श्रावक अणुव्रतों के रूप में इनका ईमानदारी, निष्ठा व दृढ़ संकल्प से पालन कर शाश्वत सुख की अनुभूति कर सकता है, स्वयं का व दूसरों का जीवन सुखमय बना सकता है। अणुव्रत का अर्थ है गृहस्थ धर्म अर्थात् कर्तव्यों के निर्वाह हेतु इनके पालन की मर्यादा सीमा तय करना और अन्यान्य तरीके से इसके उल्लंघन का प्रयास न करना। ___ उदाहरण के लिए सांसारिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए हिंसादि पापों से पूर्ण रूप से नहीं बचा जा सकता किन्तु इसका एक उचित परिमाण अवश्य किया जा सकता है। सम्पूर्ण उपलब्ध का भोग तो हम नहीं कर सकते, सम्पूर्ण आवश्कता भी हमें अपनी जरूरतों की संतुष्टि हेतु नहीं हैं फिर हम संयम और विवेक के साथ इनकी सीमा को तय करे और किसी भी परिस्थिति में इनसे डिगें नहीं। हमारी मर्यादा दूसरों के लिए वस्तु की उपलब्धता सुनिश्चित करती है। इस तरह से हम कुछ न करते हुए भी दूसरों का भला कर देते हैं। प्रभु महावीर कहते हैं कि जो व्यक्ति मर्यादा का भेदविज्ञान समझकर इनके पालन में संकल्प शक्ति को जीवन में स्थान देता है वही स्वाभाविक रूप से प्रसन्न रह सकता है तथा दूसरों की भी प्रसन्नता का कारण बन सकता है। जैन दर्शन में वर्णित इन 5 अणुव्रतों के 5-5 अतिचारों को आचार्य भगवन् सरल भाषा में उदाहरण सहित समझाते हुए कहते हैं कि पहले सत्याणुव्रत के अतिचार इस प्रकार हैं- ऐसा सत्य नहीं बोलना जिससे किसी के प्राणों का घात होता हो, किसी का घर बर्बाद होता हो, किसी का अनावश्यक नुकसान होता हो। सत्याणुव्रती किसी के प्राणों का घात नहीं करता, किसी की धनहानि नहीं इच्छता, किसी का व्यापार बंद हो जाय ऐसा सत्य भी प्रकट नहीं
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy