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________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार छल से छद्म युद्ध के लिए भेज देते हैं और अपने बेटे के लिए बगीचा खोल देते हैं। बंधुओ! कपट छिपता नहीं है। विश्वनंदी को सारा माजरा ज्ञात होते ही वह सीधा उद्यान में पहुँचता है जहाँ उसका चचेरा भाई विशाखनंदी बैठा हुआ है। वह विश्वनंदी का क्रोध देखकर पेड़ पर चढ़ जाता है लेकिन यह क्या? बलशाली विश्वनंदी उस पेड़ को जड़ सहित उखाड़कर जमीन पर पटक देता है, पत्थर के खंभे को भी उखाड़ देता है और भागते हुए विशाखनंदी से कहता है कि ले अब तू ही इसे रख । बंधुओ! समझो, छल-कपट पूर्ण आचरण करने से परिवार में टूटन आती है इसलिए मायाचारी के घिनौने खेल खेलने से बचो। विश्वनंदी का मन मायाचारी से व्यथित हो जाता है और वह अपने चाचा के पास जाकर अपने पिता की भांति आत्मसाधना करने हेतु दीक्षा की अनुमति ले लेता है। वहीं राजा को भी अपने कृत्य पर ग्लानि होती है और वह भी विशाखनंदी को राज्य सोंपकर दीक्षा ले लेता है। ___ पहले विश्वनंदी और फिर पिता के दीक्षा लेने से वह विलासी विशाखनंदी और अधिक स्वछंद तथा स्वेच्छाचारी बन जाता है, भोगविलास में आकंठ डूब जाता है, वैश्यासेवन करने लगता है। मंत्रिगण जब ऐसा देखते हैं तो उसे पदच्युत कर देते हैं। विशाखनंदी अब दूसरे राजा के यहाँ दूतखोरी की चाकरी बजाने लगता है और वहाँ भी व्यभिचारों से मुक्त नहीं रहता। आचार्य भगवन् कहते हैं कि बिना ब्रेक की गाड़ी और बिना संयम के जीवन की यही दुर्दशा होती है। आगे के कथानक में हम देखेंगे कि किसी भी तरीके का वैरभाव किस तरह से भव बिगाड़ता है। बंधुओ! यदि अच्छा आदमी भी निमित्तवश वैरभाव कर लेता है तो उसकी भी दुर्दशा निश्चित है। मुनि विश्वनंदी विहार करते हुए उसी नगर से गुजरते हैं जहाँ चाकर बना उनका चचेरा भाई विशाखनंदी किसी वैश्या के घर की छत पर खड़ा होता है। वे उसे पहचान लेते हैं और उसे संबोधने का यत्न करते हैं लेकिन वह दुष्ट विशाखनंदी तपस्वी विश्वनंदी का मजाक उड़ाता है, उन्हें धक्का मारकर गिरा देता है और निर्लज्जता से कहता है कि कहाँ गया तुम्हारा पेड़ को जड़ से उखाड़ने वाला वह बल? तुम मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। मुनि के मन में थोड़ा क्रोध आ जाता है और उनके मन में वैर की गांठ बंध जाती है। वे मात्र इतना ही कहते हैं कि तुझे इसका फल अवश्य मिलेगा। परिणाम स्वरूप विशाखनंदी का तो पतन होता ही है किन्तु विश्वनंदी का जीव भी पतन के गर्त में गिरने से नहीं बच पाता है। इसलिए आचार्य कहते हैं कि निमित्त के आगे भी स्वयं को कमजोर मत बनाओ, क्रोध मत करो, वैर मत पालो और परिणामो को कलुषित मत करो। उनके आगामी भव की कथा कहती है कि सबल होने के बाद भी अहंकार मत करो, नहीं तो नीचे गिरना ही पड़ेगा। कालांतर में भगवान महावीर का जीव त्रिपृष्ट नारायण बनता है उनके चाचा का जीव विजय बलभद्र तथा
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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