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________________ तिक्खुत्तो के पाठ से वन्दना करते समय आवर्तन देने के पश्चात् 'वंदामि' शब्द नीचे बैठकर दोनों हाथ जोड़ते हुए बोलना चाहिए। 'नमसामि' शब्द का उच्चारण करते पाँचों अंग (दोनों हाथ, दोनों घुटने और मस्तक) गुरुदेव के चरणों में झुकाना चाहिए। इसी प्रकार इस पाठ का अन्तिम शब्द 'मत्थएण वंदामि' बोलते समय भी पंचांग गुरुदेव के चरणों में झुकाना चाहिए। गुरुदेव को स्वाध्याय में, वाचना में, कायोत्सर्ग में, साधनादि संयम चर्या में व्यवधान नहीं हो इस बात का ध्यान रखते हुए वन्दना करनी चाहिए। जब गुरु भगवन्त गौचरी कर रहे हों, तपस्या, वृद्धावस्था, बीमारी अथवा अन्य किसी भी कारण से सोये हुए हों, आवश्यक क्रिया कर रहे हों, गोचरी लेने जा रहे हों, तब भी गुरुदेव के निकट जाकर वन्दना करना विवेकपूर्ण नहीं माना जाता है। श्रावक-श्राविकाओं के ज्ञान-ध्यान में, प्रवचन-श्रवण आदि में बाधा नहीं हो, इसका पूरा विवेक रखते हुए वन्दना करनी चाहिए। आवर्तन तीन बार क्यों किये जाते हैं ? मन, वचन और काया से वन्दनीय की पर्युपासना करने के लिए तीन बार आवर्तन किये जाते हैं। {94} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र प्र. 20. उत्तर
SR No.034373
Book TitleShravak Samayik Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwa Mehta
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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