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________________ एवं पिय चरमेहिं उस्सास - णिस्सासेहिं वोसिरामि त्ति ति कट्टु कालं अणवकखमाणे विहरामि इहलोगासंसप्पओगे पर लोगासंसप्पओगे जीवियासंसप्पओगे मरणासंतप्पओगे कामभोगासंसप्पओगे तस्स धम्मस्स केवलिपण्णत्तस्स अब्बुडिओमि आराहणाए विरओमि विराहणाए तिविहेणं पडिक्कतो इस प्रकार के प्यारे देह को । अन्तिम । उच्छवास, निःश्वास तक । त्याग करता हूँ । ऐसा करके । काल की आकांक्षा (इच्छा) नहीं करता हुआ । विहार करता हूँ, विचरता हूँ। इस लोक में राजा चक्रवर्ती आदि के सुख की कामना करना । परलोक में देवता इन्द्र आदि के सुख की कामना करना । महिमा प्रशंसा फैलने पर बहुत काल तक जीवित रहने की कामना करना । कष्ट होने पर शीघ्र मरने की इच्छा करना । कामभोग की अभिलाषा करना। तस्स धम्मस्स का पाठ उस धर्म की जो । I केवली भाषित है उस ओर। उद्यत हुआ हूँ। आराधना करने के लिए। विरत (अलग होता हूँ। विराधना से । मन, वचन, काया द्वारा । निवृत्त होता हुआ। {81} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र
SR No.034373
Book TitleShravak Samayik Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshwa Mehta
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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